डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की रिपोर्ट है कि गंगा दुनिया की 'खतरे में शीर्ष दस नदियों' से एक है.गंगोत्री ग्लेशियर, 30.2 किमी लंबा, एक सबसे बड़ा हिमालयी ग्लेशियरों से एक है. यह 23 मीटर की एक खतरनाक दर / वर्ष की दर से पीछे हटता जा रहा है . यह भविष्यवाणी की गई है कि वर्ष 2030 तक ग्लेशियर गायब हो जायेगा. और इसके साथ ही गंगा का अस्तित्व भी.
अब सवाल उठता है की गंगा पर बने स्थानीय परियोजनाओं का क्या औचित्य है. स्थानीय विकास के नाम पर जो मनमानी हरकत की जा रही है उसका एक विश्लेषण प्रस्तुत कर रहा हूँ.
बाँध बनाने के बाद उत्पन्न परिस्थितियां १. जल स्रोतों की कमी
२. घरों में दरारें. . (यह क्षेत्र भारत में भूकंप के सबसे अधिक संभावना वाले क्षेत्र है.) इस तरह के घरों में रहने वाले लोगों के लिए जीवन असुरक्षित हो गया है.
३.आजीविका और आय का अंत.
४.चराई भूमि और जंगलों की कमी है जिस पर पहाडी लोग निर्भर करते हैं.
५. प्राकृतिक सौंदर्य का सामान्य विनाश पर्यटन के माध्यम से आजीविका का अंत, भूस्खलन
६. स्थानीय संस्कृति का अंत जो गंगा के आसपास केंद्रित है.
टिहरी में भिलंगना नदी को लगभग ख़त्म कर दिया गया है. इसका कारण भागीरथी और भिलंगना के संगम पर बना विशालकाय बाँध है.इस तरह गंगा को अब विषैला बना दिया गया है.गंगा कभी शुद्ध गुणों के लिए प्रसिद्ध थी . परंपरागत रूप से यह एक ज्ञात तथ्य यह है कि गंगा जल में कभी कीड़े नही पड़ते वैज्ञानिक अध्ययनों से इस तथ्य की पुष्टि होती है.उसमे अब कीड़े ही कीड़े दीखते है.
दूसरी नदियों के भी बुरे हाल है यमुना पर कब्ज़ा करके शहर का फैलाव किया जा रहा है गोमती के अन्दर कूड़ा भर कर वह मकान तक निर्मित कर लिए गए. शिप्रा चम्बल के भी यही हाल है पहाड़ों पर के घने वन काट डाले गए है और वहा रिसोर्ट बना दिए गए.
गंगा का भावात्मक पक्ष :
कृष्ण वाणी है, "जल स्रोतों में मैं गंगा हूँ."
स्वामी विवेकानंद ने कहा - 'हिन्दू धर्म का गठन गीता और गंगा' ..
मौत के समय से एक अरब लोगों को अपने होंठों पर उसके पानी की बूंद लालसा.
विदेशी भूमि से भी लोग उसके प्रवाह में अपनी राख तितर बितर और खुद को धन्य मानते हैं.
ऐसी गंगा मरने के कगार पर पहुच गयी है और औद्योगिक विकास की कोई नयी गंगा बह रही है
स्वामी विवेकानंद ने कहा - 'हिन्दू धर्म का गठन गीता और गंगा' ..
मौत के समय से एक अरब लोगों को अपने होंठों पर उसके पानी की बूंद लालसा.
विदेशी भूमि से भी लोग उसके प्रवाह में अपनी राख तितर बितर और खुद को धन्य मानते हैं.
ऐसी गंगा मरने के कगार पर पहुच गयी है और औद्योगिक विकास की कोई नयी गंगा बह रही है
चिन्ता का विषय है।
जवाब देंहटाएंGreat and Motivative think toward Ganga......
जवाब देंहटाएंThere should be an vision of all Indian for this.
We have to think deep integrated timing for water preservation of Ganga Maa.
Awesome Effort in this way.......Dr. Sahab
सुन्दर कह देने से सिर्फ काम तो चलेगा नहीं, हाँ आपका प्रयास सार्थक हैं उसे लोगो के सहयोग कि भी जरुरत हैं,
जवाब देंहटाएंपवित्र गंगा को बचाने के लिए जब आम आदमी आन्दोलन नहीं करेगा , तब हर नदियों और जंगलो का नाश होता रहगे. लेकिन आम जनता को तो आरक्षण और धार्मिक राजनीती से फुर्सत मिले तब आ.
गंगा -यमुना को बचाने के लिए क्या लोग सड़क और रेल यातयात को रोकेंगे.
गिरी जी आपका कथन अत्यंत समसामयिक है शायद अब रेलयतायत और सरकार को ही ठप करने की जरूरत है तभी आवाज सुनी जायेगी और बात भी मानी जायेगी
जवाब देंहटाएंashish raiji ne is post par kaha hai
जवाब देंहटाएंashish: गंगा के बदले औद्योगिक विकास की गंगा , मानवता विनाश की राह पर अग्रसरित.
Ab to jaago sone waalon.
जवाब देंहटाएंसराहनीय एवं अनुकरणीय आलेख है.
जवाब देंहटाएंआने वाली पीढ़ियाँ हमें कभी क्षमा नहीं करेंगीं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा इस लेख को पढ़ कर और आपके ब्लॉग पर आकर.
जवाब देंहटाएंसादर
यह लेख सोचने को मजबूर करता है.गंगा को बचाने के अब तक जितने भी प्रयास हुए हैं वे सब कागजों तक ही सीमित हैं.निश्चित रूप से अब तो हमें जाग जाना चाहिये.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर विवेचन .....चिंतनीय विषय है यह.....
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