जापान में सुनामी की वजह से जो तबाही हुई उसके अपने कुछ निहितार्थ है . हालाँकि सुनामी के बारे में बहुत कुछ लिखा सुना गया पर मै एक समाज वैज्ञानिक के दृष्टिकोण से अपना मत प्रस्तुत कर रहा हूँ
१. तथाकथित भविष्य वाचको एवं उनके समर्थको के मुंह पर तमाचा -
नया साल शुरू होते ही तमाम ज्योतिषियों पीरो और पोंगा पंडितो की फौज दुनिया का भविष्य बताने लग जाती है. लोग भी बड़े तल्लीनता के साथ भविष्य जानने में रत हो जाते है. कोई ऐसा भविष्य वाचक ने सुनामी के बारे में जानकारी नही दी क्या उसे तब गृह नक्षत्रो की चाल का पता नही लग पाया. इससे सिद्ध होता है कि ये लोग वास्तव में जनता को मूर्ख बना कर अपना उल्लू सीधा करते है.
२. संस्कृति प्रकृति के आधीन है - संसार में जो कुछ मानव निर्मित है वह सब मनाव कृत -संस्कृति है . संस्कृति दो प्रकार की होती है प्रथम मूर्त जिसमे सुई से लेकर हवाई जहाज तक सम्मिलित है और यह सभ्यता के स्तर का भी मानदंड बन जाती है ....द्वितीय अमूर्त जिसमे वैचारिक बातें आती है मानव चाहे सृष्टि को रचने या बदलने का दंभ पाले लेकिन सत्यता यह है कि प्राकृतिक शक्ति के सम्मुख उसे नत होना ही पड़ता है .एक बात स्पष्ट कर दू कि प्रकृति की अधीनता में ही मानव कल्याण छिपा है.
३.विकास का प्राथमिक पैमाना औद्योगीकरण नही है-
जो देश जितना औद्योगिक होगा वह समग्रतः विकसित होगा यह एक मिथक है. वस्तुतः विकास का पैमाना मानव की चेतना सहनशीलता और सामंजस्य करने की क्षमता पर आधारित है इसके पश्चात कोई भी प्रक्रिया सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ती है.
४. प्रकृति की भाषा को समझो-
सुनामी के माध्यम से प्रकृति ने अपनी बात मानव के समक्ष रखी है जिसे विनम्रता पूर्वक प्रकृति को समझना और अनुपालन करना अनिवार्य होना चाहिए
इन गूढ़ निहितार्थो को समझ कर लोगो तक ले आये
जवाब देंहटाएंआपका आभार
प्रकृति की भाषा को समझो
जवाब देंहटाएंसामयिक और अच्छी प्रस्तुति है.
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