मंगलवार, 13 सितंबर 2011

सई नदी मृत नदी क्यो? जंगल माफियाओ का कारनामा


सई नदी को मृत नदी के रूप मे तब्दील किया जा चुका है. यह तब्दीली और कही से नही आयी बल्कि वही के लोगो  की वजह से आयी है. मै लगभग ढाई महीने पहले जब नदी के किनारे गया था तो वहा नाम मात्र का पानी था. आस पास के लोगो से बात चीत के आधार पर ज्ञात हुआ कि बरसात के दिनो मे सई का पानी किनारे बसे गावो मे भर जाता है. सई नदी को ध्यान से देखने के बाद मुझे पता चलाकि यह नदी छिछली होती जा रही है. नदी के पुल के इस पार धीरदास  धाम है जहा एक बाबा की समाधि बनी हुयी है. उस पार चुंगी है. हालांकि अब बन्द हो गयी है. चुंगी के नीचे की हलचल देखकर मै वहा देखा तो माजरा समझ मे आया. यहा जंगल माफियाओ क स्वर्ग दिखा मुझे. नदी के किनारे पेडो की कटान अपने चरम पर थी. मैने कैमरा निकाल कर कुछ स्नैप्स लिये. यह देखकर एक मोटा आदमी आकर धमकाने लगा. जल्दी जल्दी कैमरा जेब मे ठूस कर वहा से निकला. धीर दास की ओर जाते हुये मैने सोचा कि इतने सई नदी और बाबा के भक्त लोग यहा है बावजूद इसके इन गुंडो और अपराधिये की रोक टोक करने वाला कोई नही है.

पेड कटने से मिट्टी  स्वतंत्र हो जाती है (जिसको जडे बाधे रहती थी) और नदी मे सीधे पहुचती है फिर नदी की तलहटी मे जमा होती रहती है. जिससे नदी उथली होने लगती है. यही चीज बाद मे नदी के सूखने और बाढ का कारण बनती है.इसी वजह से जीव जंतु और अन्य वनस्पतिया भी विकसित नही हो पाते और नतीजा नदी मृत्यु की ओर बढने लगती है. 




सई के किनारे लकडियो का ढेर 





जंगल कटान मे लगे लोग





कटान मे प्रयुक्त मशीने




 सई नदी का उथलापन 

शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

वास्तविक हरित क्रांति का पहला चरण: बैल चालित पम्प


भारत में तकनीकी विकास इतना हो गया हम चाँद और मंगल पर बेस बनाने  की तैयारी में लगे है. किन्तु आज भी लगभग ३० परसेंट जनता दो वक्त की रोटी का इंतजाम बमुश्किल कर पाती है तो ऐसे  में तकनीकी विकास की सार्थकता पर बड़ा  प्रश्नचिन्ह लगता है.

तकनीकी विकास मतलब उपग्रह छोड़ना संकर प्रजाति के बीज बनाना सूचना आदान प्रदान की सहूलियतो  को तीव्र करने  इत्यादि से लगाया जाता है.जबकि विकास पैमाना यह होना चाहिए कि शोषण से कितनी मुक्ति मिली और प्रक्रति से कितना तादात्म्य स्थापित हुआ. 

उपर्युक्त सिद्धांत को अमलीजामा पहनाते हुए कानपुर के वैज्ञानिको और किसानो के मिलेजुले प्रयासों से एक बैल चालित पम्प का विकास किया गया है. बैलो के प्रयोग से एक तरफ जहा डीजल की बहुमूल्य  बचत करके कृषि कार्य को आत्म निर्भता की ओर ले जाया जा सकता है वही ट्रैक्ट्रर के इस्तेमाल करने वाली भारी भरकम लागत से भी निजात पाया जा सकता है. 

इस पम्प की विस्तृत जानकारी इस विडियो के माध्यम से दी गयी है


इस यंत्र की कीमत बोरिंग समेत लगभग 58 हजार रूपये है. सरकार से इस पर सब्सिडी देने क अनुरोध किया गया है किंतु अभी तक कोइ संतोषजनक जवाब नही मिला है. 
इस प्रकार यह स्वदेशी तकनीक है जिसके सहारे हम वास्तव मे हरित क्रांति की ओर सतत रूप से बढ  सकते है.



नोट: इस यंत्र का प्रयोग  कानपुर मे करौली और परियर नामक स्थान पर सफलतापूर्वक किसानो द्वारा किया जा रहा है. यदि किसी को यह अप्प्लीकेशन देखना हो तो वह यहा आकर देख सकता है.