मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

सभी ब्लागर से एक अपील:अपने जीवनकाल में कम से कम चार छायादार वृक्ष लगाएं.


क्या  आप प्रकृति से जरा  भी प्यार करते है? यदि न तो यह पोस्ट आपके लिए नही यदि हां तो एक काम कीजिये  काम अत्यंत सहज और सरल है. अपने जीवनकाल में कम से कम  चार छायादार वृक्ष लगाएं. इस बार बारिश यूं ही न जाने दीजिये अपने आस पास  पेड़ लगाना शुरू कीजिये लोगो को प्रोत्साहित कीजिये. आप पर धरती का क़र्ज़ है इस क़र्ज़ को समझने का प्रयास कीजिये.
प्रकृति को सुधारने की आवश्यकता नही बल्कि खुद को है हम प्रकृति से जीवन प्राप्त करते है यह इंसान का दायित्व है कि वह पेड़ लगा कर जीवन को और समृद्ध बनाये.










हमें नही चाहिए 
बड़े बड़े कारखाने 
जिसमे से निकलता है 
जहरीला धुँआ
और फ़ैल जाता है 
हवाओं में फिर दिल में 
झौंस देता है 
कोमल कोंपलों को 
हमें नही  चाहिए
चाँद की जमीन और पानी  
धरती पर मीठे झरनों को 
मुक्त कर दो 
कोई भी तकनीक जिससे 
मानवता का दलन
और प्रकृति का गलन 
होता है तज दो
बिना किसी भाव के 
बिना किसी लालच के 
आने वाली पीढ़ियों की खातिर 








गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

"चोंगा एंड चोंगा कंपनी में पर्यावरण जागरूकता पर गहन चर्चा" HAPPY EARTH DAY

कानपुर में एक प्रसिद्ध संस्थान है चोंगा एंड चोंगा कंपनी . यहाँ आज  अर्थ डे मनाया जा रहा था. एक बड़े से हाल में खूब गहमा गहमी मची थी कंपनी के कर्मचारी तैयारियों में आकाश पाताल  एक किये हुए थे. महिला कर्मचारी लिपी पुती अतिथि गण की राह निहार रही थी. हाल के अन्दर बड़े से  प्लास्टिक के बैनर पर सेव अर्थ लिखा हुआ था. बड़े बड़े लोग लोगियाँ परफ्यूम लगाए इधर उधर गर्वीले भाव में चहलकदमी कर रहे थे.कार्यक्रम का आयोजक  चोंगा एंड चोंगा कंपनी के मालिक चोंगाबसंत से बोला,"सर अब आईये हाल को एसी से चिल कर दिया गया है ". थोड़ी देर में हलचल हुयी और चोंगाबसंत जी  मुख्य अतिथि डॉ बंदरवाल मुख्य वक्ता डॉ पोंगालाल और छ सात लगुओ भगुओ के साथ पधारे. कार्यक्रम की शुरुआत गुलदस्ते और माल्यार्पण से हुआ. इसके पश्चात उबाऊ भाषणों का सिलसिला शुरू हुआ. कार्यक्रम के दौरान प्लास्टिक की बोतलों और गिलासों में मिनरल वाटर की व्यवस्था की गयी बाकी कोल्ड ड्रिंक और चाय वाय भी डिस्पोसल सिस्टम में चाक  चौबंद मिल रहा था.
 भाषणोंपरांत वृक्षारोपण प्रस्तावित था.तमाम मुरझाये पौधे  एक कतार से रखे थे. कार्यक्रम व्यवस्थापक जल्दी से दौड़े और पौधे लेकर खड़े हो गए. मुख्य अतिथि पौधे को छूकर गड्ढे की तरफ इशारा मात्र करते और कंपनी के  लगुए भगुए झट से गद्धो में मिटटी डालने लगते तत्पश्चात कंपनी मालिक उनपर पानी छिडकाव करता और बीच बीच में बोलता जाता,सर! इस बार गधाचंद की जगह आप इस दास को मौका दीजिये न टेंडर मेरे नाम से खुलवाईयेगा. चाहे तो दो परसेंट हिस्सा और बढ़ा लें वैसे भी सब आपका ही है. ही ही ही . आप भी क्या बात करते है  चोंगाबसंत साहब, एक बार जबान देतो समझे पक्की. लेकिन आपका "वो" वाला प्रोग्राम क्या बढ़िया था चकाचक व्यवस्था थी यहाँ तो मुर्दाये चेहरे दिख रहे है देखिये न ये मैडम तो ठीक से लिपस्टिक भी नही लगाए है. हे हे हे. चोंगाबसंत एकदम उत्साह में आकर बोला, अरे आप हुकुम करो अगली बार धाँसू प्रोग्राम करवाता हूँ कहो तो मुंबई से बार डांसरो को भो बुलवा लूँगा. बस आप टेंडर न जाने दीजियेगा. मुख्य अतिथि की आँखों चमक आ गयी. इसी तरह अर्थ डे संपन्न हुआ. थोड़ी देर बाद समारोह स्थल पर प्लास्टिक की पन्नियाँ गिलास रैपर बोतले कुचले हुए फूल कूड़े के रूप में पड़े हुए थे.
अगले दिन अखबार में था "पर्यावरण संरक्षण हेतु पालीथिन का प्रयोग न करे" --डॉ बंदरवाल . "तापीय वृद्धि में योगदान देते ए.सी."-- श्री चोंगाबसंत. "चोंगा एंड चोंगा में पर्यावरण  जागरूकता पर गहन चर्चा".

बुधवार, 6 अप्रैल 2011

दोगलापन

दर्शन और व्यवहार का दोगलापन ही वह सहज चीज़ है जो इस जमाने को हर गुजरे जमाने से अलग करता है. हो सकता है किसी जमाने में आदमी ज्यादा बर्बर हिंसक या आक्रामक रहा हो लेकिन यह तय है की उस पशुत्व में भी कम से कम धोखाधड़ी न थी. हो सकता है की चंगेज़ो या नादिरशाहो ने नरमुंडो के ढेर लगाए हो पर यह तय है उन्होंने मानवतावाद सह अस्तित्व प्रजातंत्र या समाजवाद के नारे नहीं ही लगाए थे. साम्प्रदायिकता प्रबल रही होगी लेकिन निश्चित ही धर्मनिरपेक्षता की ओट में नहीं रही होगी. गौर से देखा जाय कि बीसवी शताब्दी और खासकर द्वितीय विश्वयुद्ध  के बाद की दुनिया छद्मवाद की दुनिया है. मानवता और प्रजातंत्र का रक्षक बेहिचक परमाणु बम  का प्रयोग करता है  जनसमर्थन से क्रान्तिया   करने वाले जनसंहार में तिल भर संकोच नहीं कर रहे है. प्रजातान्त्रिक व्यवस्थाये नंगी ताकत के सहारे चल रही हैं. धर्मध्वजा लहराते हुए विजय अभियान पर निकले गिरोह अपने वास्तविक उद्देश्यों में धर्मनिरपेक्ष नहीं तो गैर धार्मिक तो है ही और उनसे कही कमतर नहीं वो धर्मनिरपेक्ष जो बिना साम्प्रदायिक टुकडो में बांटे सच्चाई को देख ही नहीं सकते. पर्यावरण को नष्ट करने वाली नयी से नयी तकनीक का प्रयोग करने वाले ही यह हैसियत  रखते है वो  पर्यावरण संरक्षण के लिए बड़े से बड़ा एन.जी.ओ. चलाये.
सो भैया  राज तो है दोगलो का हर ढोल में बहुत बड़ा पोल, घुस सको  तो घुस जाओ  और न घुस पाए  तो ढोल की तरह पिटते रहिहे . दोनों ही सूरत में कल्याण नहीं है.
वर्तमान समय में आवश्यकता है सहज ढंग से चलने  वाली व्यवस्था का जिसमे शिखंडी तत्व  की मौजूदगी न हो.

बोल्यो...
गान्ही महाराज की जय
भ्रष्टाचारियों की हो क्षय