साबुन शैम्पू , पाउडर, जेल, परफ्यूम कपडे लत्ते, खान पान, रहन सहन, पैकेट, शौचस्नान, यहां तक कि प्रजननरोधी उपकरणो से जो गंदगी पैदा होती है उसके पुनर्चक्रण या निष्पादन के तरीके आधुनिक विज्ञान खोज नही पाया है। इसके अलावा रासायनिक, आणविक, युद्ध के लिए प्रयुक्त सामग्रियों से उत्पन्न कचरे के निपटान की बात तो अभी चिंता का विषय वस्तु ही नही बना।
घुरहू(काल्पनिक नाम ) अपने अरहर के खेत में रोज सुबह मल विसर्जित करने जाता है। उसका मल दो चार दिन में अपघटकों द्वारा अपघटित कर मिटटी की उर्वरता में बदल दिया जाता है और परिणामस्वरूप फसल को रासायनिक उर्वरकों से बचा कर देश की मुद्रा बचायी जा सकती है।
मिस्टर आर के वर्मा (काल्पनिक नाम )अपनी इटैलियन संडास में जाकर पानी में मल त्याग करते हैं और ढेर सारे टिस्यू पेपर के साथ वह गन्दगी, गंगा -यमुना में विभिन्न बीमारी पैदा करने वाले रोगाणुओं के साथ मिलती है और पवित्र नदियों को दूषित कर देती है। पानी में मानव मल कभी अपघटित नही होता बल्कि पानी के साथ मिलकर हैजा बन जाता है।
दोनों में कौन गंदगी के लिए जिम्मेदार है ?
गंदगी एक आधुनिक अवधारणा है जिसकी जड़े औद्यौगिक क्रान्ति और विज्ञानवाद में है। पत्तों पर पानी देकर कुछ समय के लिए पेड़ को चमकदार देखा जा सकता है पर थोड़े दिन बाद पेड़ का सूखना निश्चित है। रही बात विदेशों में साफ़ सफाई का तो उनके यहाँ कचरे की डंपिंग को लेकर जो बवाल हो रहा है उसको हम नही देख पा रहे या देखना नही चाहते।