गुरुवार, 28 जून 2012

गंगा का विकल्प नहीं है



मोक्ष दायनी, जीवन दायनी, पतित पावनी माँ गंगा, हमारे जीवन का आधार माँ गंगा, हमारा पालन पोषण करने वाली माँ गंगा, हमारे पापों को हरने वाली माँ गंगा, हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक साथ देने वाली माँ गंगा/ आज माँ गंगा को हमने खुद मृत्यु के नजदीक ला के खड़ा कर दिया है/ इस के लिए हम किसी दुसरे को दोष नहीं दे सकते है, आज गंगा को इस स्तिथी में लाने वाले हम ही हैं/ हमारा अधिकाधिक बढता उपभोग ही इसके लिए जिम्मेदार है/
माँ गंगा नदी उदगम से लेकर अंत तक लगभग ४० करोड़ लोगों के बीच से होकर गुजरती हैं/ इस मार्ग १०० से भी ज्यादा बड़े शहर एवं लाखों छोटे नगर, कस्बे, गाँव आदि पड़ते हैं/ देश की ४५% जनसँख्या गंगा छेत्र में रहती है, देश का ४७% सिंचित छेत्र गंगा बेसिन में है/ पेयजल, सिंचाई का पानी और आस्था स्नान में गंगा की अपरिहार्यता है, लेकिन यही गंगा तमाम बाधों, तटवर्ती नगरों के सीवेज और औद्योगिक कचरे को ढोने के कारण मरणासन्न है/
आज माँ गंगा जहाँ से निकल रही है वही से प्रदूषित होकर निकल रही है, माँ गंगा के उदगम स्थल पर आज ३०० से अधिक बाँध योजनायें प्रस्तावित हैं/ माँ गंगा को इन बांधों के माध्यम से कैद किया जा रहा है/ 'माँ गंगा तेरा पानी अमृत कल कल बहता जाये' यह बाते अब सिर्फ गीतों तक ही रह जायेंगी/ श्रीनगर क़स्बा, गढ़वाल के पास बनने वाले बांधो की वजह से की वजह से माँ गंगा का प्रवाह अब ५० किलोमीटर तक सुरंग के अन्दर ही रहेगा अब उदगम पे ही माँ गंगा दर्शन के उपलब्ध नहीं हो पाएंगी/ चायगाँव जोशी मठ के पास भी गंगा नदी अब ११ किलोमीटर तक सुरंग के अन्दर ही रहेगी/ अब वहां के निवासियों को अस्थियाँ प्रवाहित करने के लिए भी माँ गंगा नहीं मिलेंगी/ जहाँ गंगा नदी कल कल छल छल बहती थी अब वहां ऐसा लगता है जैसे आप किसी नदी की लाश पे से गुजर रहे हो/ वहां माँ गंगा अब मर चुकी हैं/
देवप्रयाग के पास जहां अलकनंदा और भागीरथी नदियों का संगम होता है वहां बाँध बनाने के लिए १२०० हेक्टेयर का जंगल साफ़ कर दिया गया है, वहां रहने वाले जंगली जानवरों का घर अब उजाड़ दिया गया है किसी को उनकी कोई चिंता नहीं है/ नदियों को सुरंग से ले जाने के कारण उनमे रहने वाले ऊदबिलाव और महर्षि मछलियां शायद अब इतिहास की बात हो जाएँ/
विकास हो रहा है लेकिन शायद एक नदी की लाश पर जिसे हम अपनी माँ कहते हैं/ हमे बिजली चाहिए लेकिन उन जंगली जानवरों के घर उजाड़ कर या उनका अस्तित्व खत्म कर के/ कल यही विकास हमारी और आपकी लाश के उपर से होगा क्यों की ना तो पीने के लिए पानी होगा ना ही सिचाई के लिए/ विद्युत का विकल्प है लेकिन माँ गंगा का विकल्प नहीं है/(आदित्य पालीवाल)