सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

प्रतिमा विसर्जन से मैला हुआ मां का आंचल


जैसा कि मैने अपनी पिछली पोस्टो मे कहा था कि नवरात्रो के बाद गंगा और मैली हो जायेगी, वही हुआ. आज दैनिक जागरण समाचार से  इस बात की पुष्टि होती है. कानपुर के तमाम घाटो की स्थिति पर आधारित यह खबर देखिये और मूर्तिविसर्जन के प्रदूषणकारी परिणामो से अवगत होइये.
"एक मां की मूर्तियों का विसर्जन कर श्रद्धालुओं ने दूसरी मां के आंचल को मैला कर दिया। शहर के सरसैया घाट, गोला घाट, मैस्कर घाट व अन्य घाटों में दुर्गा प्रतिमाओं के अवशेष, प्लास्टिक की थैलियां बिखरी हुई हैं। गंगा की धारा को स्वच्छ बनाने के लिए हर साल करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं पर गंगा की धारा निर्मल नहीं हो पा रही। इसके पीछे कहीं न कहीं हम सभी जिम्मेदार हैं। आस्था के नाम पर दुर्गा पूजा और गणेश उत्सव के बाद गंगा में मूर्तियां का विसर्जन कर मां को गंदा किया गया वहीं मंदिरों में चढ़ाए गए फूल व अन्य पूजन सामग्रियों को भी प्रवाहित कर मोक्षदायिनी के आंचल को मैला किया जा रहा है। जिन घाटों पर स्नान के लिए भक्तों की सर्वाधिक भीड़ होती है, वही घाट सबसे अधिक गंदे हैं। घाटों में हर जगह मूर्तियों के अवशेष पड़े हुए हैं। गणेश उत्सव के बाद गंगा में छोटी बड़ी करीब पांच हजार मूर्तियां गंगा में विसर्जित की गई थीं। भगवान गणेश के गदा, चक्र आदि स्टील के थे तो घाटों पर रहने वालों ने उन्हें निकाल लिया था। पुआल हटाकर लकडि़यों के ढांचे भी लोग ले गए पर वस्त्र उन्होंने घाटों पर ही छोड़ दिए। कुछ ऐसा ही दुर्गा पूजा के बाद हुआ। पांच सौ से अधिक दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन हुआ जिनके अवशेष घाटों के किनारे पड़े हैं। श्रद्धालुओं ने विसर्जन के समय अन्य पूजन सामग्रियां भी प्लास्टिक थैलियों में भरकर फेंक दी थीं। ये प्लास्टिक की थैलियां व वस्त्र घाटों के किनारे ही पड़े हुए हैं। अभी तक उन्हें उठाने को कोई संस्था आगे नहीं आई है।"

शनिवार, 6 अक्तूबर 2012

केवल 1,706 बाघ बचे हैं

देश में बीते नौ महीनों में कम से कम 69 बाघों की मौत हुई है। इनमें से अधिकांश बाघों की मौत दुर्घटना या फिर शिकारियों के कारण हुई है। यह जानकारी राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने शुक्रवार को दी।यह सूचना IBN7 से प्राप्त हुयी है।
एनटीसीए के सहायक महानिरीक्षक राजीव शर्मा ने बताया कि देश के 41 बाघ अभयारण्यों में जनवरी से सितम्बर के बीच 69 बाघों की मौत हुई है। इनमें से 41 की मौत शिकार या फिर किसी दुर्घटना के कारण हुई है, जबकि 28 की प्राकृतिक मौत हुई है।
उत्तराखण्ड, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में मृत्यु दर ऊंची है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार देश में केवल 1,706 बाघ बचे हैं।
 जैसा कि पहले भी मै कह चुका हू  बाघों को सुनियोजित तरीके से नरभक्षी बनाया जाता है फिर उनकी हत्या को वैध रूप प्रदान करने में आसानी हो जाती है. यह सब उस मानवता के नाम पर होता है जो चाँद कागज के टुकडो में बिकती है. बाघों का शिकार बढ़ती मांग का ही नतीजा है .  6 साल पहले बाघ की हड्डियां प्रति किलो 3,000 से 5,000 डॉलर हुआ करती थी। बाघ की हड्डियों का इस्तेमाल कामोत्तेजना बढ़ाने वाले उत्पाद, जोड़ों या हड्डियों की बीमारियों को दूर करने की दवाएं आदि बनाने में किया जाता है। वहीं बाघ के नाखून बुरी शक्तियों को दूर भगाने के लिए लोकप्रिय हैं। इनकी कीमत भी हड्डियों के बराबर ही है। तब से लेकर अब तक इनकी कीमतें 10 से 15 फीसदी बढ़ी हैं।
अरबो  रूपये खर्च होने के बाद  भी बाघों का संरक्षण   चुनौती बना हुआ है।

गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

आइये कुरीतियो और प्रदूषणकारी व्यवस्था का बहिष्कार करे

अभी गणेशोत्सव बीता है आगे नवरात्रे आने वाले है यह त्योहार जीवन मे रंग भरते है प्रेम का, उल्लास का, भेदभाव से ऊपर उठने का मौका देते है प्रकृति को नजदीक से जानने व करीब जाने को प्रेरित करते है. किंतु हकीकत मे हो क्या रहा है???? इनके नाम पर गुंडे लोग चन्दावसूली और रंगबाजी करने लग जाते है चौराहो को खोदकर पंडाल खडे  कर दिये जाते है किसी माई के लाल मे हिम्मत नही है जो इस गुन्डई के खिलाफ चू भी करे. और कोढ मे खाज कोई बडे नेता पोता को बुलाकर राजनैतिक सेटिंग को भी अंजाम दिया जाता है. पडो की पौ बारह होती है. इतने जोर जोर से जगराते है लाउड्स्पीकर बजते है कि छोटे बच्चो और बुजुर्गो पर अत्यधिक बुरा प्रभाव पडता है. घर मे महिलाये और पुरुष भी इन दिनो पहले से ज्यादा चिडचिडे हो जाते है. तो इस किसिम के उत्सव से किसके जीवन मे उल्लास आ रहा है. किसी के नही. आगे हाल और बुरा है प्लास्टर आफ पेरिस की मूर्तियो को नदियो या पवित्र सरोवरो मे विसर्जित करने की कुप्रथा नदियो और सरोवरो का विनाश करने मे विशेष भूमिका अदा कर रही है. यहा नशे मे टुन्न लोग मूर्तियो को लेकर आते है और सांस्कृतिक के साथ जल प्रदूषण करके चले जाते है. 
अब आप लोग तय कीजिये कि क्या इसी तरह ये सब होता रहेगा. मैने एक पहल की है कि त्योहारो पर लाउड्स्पीकर का प्रयोग न किया जाय और मूर्तियो को जल मे ना वरन भूमि मे विसर्जित की जाय. एक शहर मे एक दो ही जगह एक मूर्ति की स्थापना की जाय और वही पूजा अर्चना के लिये प्रशासन व्यवस्था करे. इससे चन्दे की वसूली भी रुकेगी और व्यवस्था भी बनी रहेगी. 
आइये इन कुरीतियो और प्रदूषणकारी व्यवस्था का बहिष्कार करके आने वाली पीढियो के लिये हरी धरती का निर्माण करे.