
है वन एवं समुद्र मानव द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाई आक्साइड का लगभग ५० परसेंट सोख लेते है. वर्ष २००१ से अचानक पर्यावरण में कार्बन डाई आक्साइड की उपस्थिति खतरनाक ढंग से बढ़ना शुरू हुई है एक शोध के अनुसार २००० से २००७ के मध्य तक यह क्षमता २७ परसेंट तक आ गयी है. वर्ष २००६ से इसका असर खतरनाक ढंग से अन्तातिका पर पड़ रहा है ताप क्रम बढ़ने से ग्लेसियर पिघल रहे है वैज्ञानिको का अनुमान है की २१०० तक ३३% अन्न्तार्तिका की बरफ पिघल जायेगी. इससे समुद्री सतह में १.४ मीटर तक ऊपर उठ जायेगी.
इसके साथ साथ कार्बन उत्सर्जन का सबसे बुरा असर मौसम चक्र पर दिख रहा है
एक नजर उत्सर्जन करने वाले देशो की स्थिति पर

अमेरिका ---६०४९( मिलियन टन)
चीन ---- ५०१०( मिलियन टन)
रूस ---- १५२५( मिलियन टन)
भारत ----१३४३( मिलियन टन)
जापान ----१२५८( मिलियन टन)
जर्मनी ---- ८०९ ( मिलियन टन)
कनाडा ---- ६३९ ( मिलियन टन)
ब्रिटेन ---- ५८७( मिलियन टन)
द कोरिया ---- ४६६( मिलियन टन)
इटली ---- 450( मिलियन टन)
मजे की बात यह है की कार्बन उत्सर्जन को औद्योगिक विकास का पैमाना मन जाता है. सुधी पाठको इस इस दिशा में सार्थक पहल करनी होगी नहीं तो नयी धरती ढूढने के लिए तैयार रहे जोकि संभव नही है
अच्छा और सार्थक लेख
जवाब देंहटाएंआपका पर्यावरण के प्रति लगाव देखकर अच्छा लगा.मेरे ब्लॉग पर मेरी पीछे की कुछ पोस्टें देखेंगे तो समझ जायेंगे की मुझे भी पर्यावरण से प्रेम है.
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