पर्यावरण पर काफी कुछ लिखा जा रहा है पढ़ा जा रहा है एक तरह से पर्यावरण की बात करना फैशन या स्टेटस सिम्बल भी बन गया है. पर्यावरण बचाने के नाम पर सरकारी गैर सरकारी संस्थाए पैसा और पुरस्कार बटोरने में लगी है किन्तु हमारा वातावरण अपनी बदहाली पर लगातार जार जार हुआ जा रहा है. मेरा मानना है की यदि हम अनावश्यक शोबाज़ी करना छोड़ दे तो प्रदूषण की आड़ समस्या ख़त्म हो जायेगी.
लक्जरी दिखने और दिखाने के चक्कर में ही पर्यावरण की ऐसी तैसी हो गयी है.
मेरी अपील सभी लक्जरिअस लोगो से है कि अपनी करतूतों पर पुनः विचार करे. पूंजी के मद में प्रकृति से खेलना बंद करे नहीं तो जब प्रकृति खेलती है तब..... तब सुनामी आती है. एक और ट्रेंड चल निकला है कि पर्यावरण प्रदूषण की जिम्मेदारी अपने से कमजोर लोगो पर डालने की. विकसित देश विकासशील देशो पर इसकी जिम्मेदारी डालते है तथाकथित सभ्य लोग गवारो पर, पूजीवादी गरीबो पर प्रदूषण फैलाने का आरोप मढ़ कर अपने कर्तब्य की इतिश्री कर लेते है.
अब सवाल है कि वसुंधरा की हरीतमा कैसे बचे
हम क्या कर सकते है..........?
मै ब्लोगर साथियो से आवाहन करता हूँ कि वे अपने विचारो से मुझे अवगत कराये ताकि उनके विचारों की नीव पर धरती की हरियाली महफूज़ रखी जाये.
पर्यावरण विषय पर आपके जो भी विचार आंकड़े उपलब्ध हो यहाँ प्रेषित करने की कृपा करे ताकि धरती की उत्तरजीविता में आपकी सहभागिता सुनिश्चित हो सके. पता है haridharti@gmail.com .यह एक सामूहिक प्रयास है बिना आपके सहभागी हुए अंजाम तक पहुचने में संदेह है अतः खुले दिल से माँ भूमि के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाए.
धरत्ती को सवारने का इमानदार प्रयास
जवाब देंहटाएंआप के कोशिश रंग लायेगी
धरती की हरियाली बनाये रखने में ही हमारी खुशहाली है
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