
वाराणसी में आदि केशव घाट पर यही फिकल क्वालिफार्म डेढ़ लाख प्रति सौ सीसी पानी में हैं, जबकि वी.ओ.डी की मात्रा 22 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी में है। अगर एक लाइन में कहा जाय तो गंगा अब मरने के कगार पर पहुंच चुकी है। वह दिन दूर नहीं जब गंगा इतिहास के पन्नों में सरस्वती नदी की तरह कहीं खो जाएंगी।
बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में गंगा प्रयोगशाला के हेड प्रो. यू.सी चौधरी ने तो यहां तक कह दिया है कि गंगा में आक्सीजन की मात्रा अब तक के निम्नतर स्तर पर है, क्योंकि टिहरी में गंगा के पानी को रोक तो दिया गया है लेकिन गंदे नालों का पानी गंगा में लगातार गिर रहा है जिससे आक्सीजन की मात्रा लगातार कम होती जा रही है। उन्होंने बेबाक लहजों में कहा की यदि अब गंगा को बचाने का ठोस प्रयास नहीं किया गया तो गंगा को कोई नहीं बचा
द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद का कहना है कि 'नदी बेगे न शुद्धते', अर्थात जिस नदी में धारा नहीं होगी उसकी गुणवत्ता भी समाप्त हो जाएगी। रक्षत गंगाम आन्दोलन के प्रणेता राम शंकर सिंह का कहना है कि टिहरी से गंगा को मुक्त कर दिया जाए और शहरों के गंदे नाले गिरने बंद हो जाएं तभी गंगा बच सकती है वरना इसे बचाना संभव नहीं है।
एक नज़र इधर
अब इन रूपयों की गंगा सरकारी बाबुओ हाकिमो नेताओ के घर में बहेगी और वह से और प्रदूषित होकर फिर भागीरथी में मिल जायेगी.
भारत की जीवन रेखा कही जाने वाली गंगा तिल-तिल कर मर रही है लेकिन उसके तथाकथित पुत्र उसे चुप-चाप मरते हुए देख रहे हैं और गंगा कि दुर्दशा ऐसी तब है जब गंगा एक्शन प्लान का दूसरा चरण चल रहा है। कहना न होगा कि गंगा सफाई के नाम पर करोड़ों रुपये अब तक बहाए जा चुके हैं लेकिन वही हालत है कि 'ज्यों-ज्यों दावा की त्यों-त्यों मर्ज बढ़ता गया'। गंगा सफाई के सरकारी प्रयास के अलावा कम से कम तीन दर्जन एनजीओ वाराणसी में ऐसे हैं, जो दसों साल से गंगा प्रदूषण का राग अलाप रहे हैं लेकिन गंगा में प्रदूषण रोकने के लिए प्रयास नहीं किए।