दिल्ली जाते हुये कालिंदी कुंज पुल से जब आप बांयी ओर निगाह डालते हैं तो एक बारगी लगता है कि बजबजाते सीवर के ऊपर से गुजर रहे हो। पिघले तारकोल-सा काली यमुना और उस पर झक सफेद झाग की मोटी चादर ऐसा लगता है कि ढेर सारे मरणासन्न जानवर फेंचकुर छोड़ रहे हो। एक कारुणिक दृश्य दिखता है गंदे आर्सेनिक युक्त नाले और सीवर यहाँ यमुना का नाम प्राप्त कर लेते है और यमुना सफ़ेद झाग के कफ़न में दफ़न हो जाती है। छोटी और सहायक नदियों के और भी बुरे हाल हैं। हिंडन नदी जिसके तट पर सैंधव सभ्यता पनपी वह भी कब की मृत घोषित है। अपने आँचल में कूड़ा, विष्ठा, जहर को समेटे ये नदियां तथाकथित विकास के नीचे दबी अंतिम साँसे लेने को अभिशप्त हैं।
गर्मी आने वाली है। पूरे राष्ट्रीय राजधानी परिक्षेत्र (एन सी आर) में पानी के लिए हाहाकार मचने वाला है। फरीदाबाद से गाजियाबाद तक भूगर्भ जल विषैला होता जा रहा। यहाँ पीने का पानी बोतल में मिलता है। कंपनियों की पौ बारह है।भूजल का सीधा ताल्लुक पेड़ों के सूखने से है। जैसे जैसे भूजल नीचे जायेगा या विषैला होगा वैसे ही पेड़ों की जड़े पानी प्राप्त करने में कठिनाई महसूस करेगीऔर पानी के अभाव में या जहर के प्रभाव से पेड़ सूखने लगेगे। वह इलाके जहा भूजल खतरनाक ढंग से निम्न स्तर पर पहुच गया है वहा हरियाली का नामोनिशान ख़तम है। नदियों का जहरीला होना, पानी का कम होना, पारंपरिक तालाबो का ख़तम होना, भूजल के लिए शुभ नहीं। जमीन से इस कदर पानी का दोहन हो रहा कि थोड़े ही दिन में पेट्रोल और पानी के रेट बराबर हो जायेंगे। अभी पानी २५ रूपये लीटर और पेट्रोल ७० रूपये दूध ३० रुपये है। आज से २५ साल पहले यह कोई सोच भी नही सकता था।
शहद के छत्ते गायब , गौरैया के साथ गिद्ध और कौवे भी गायब , खेत खलिहान गायब , घर के आँगन गायब , रिश्ते नाते गायब , गंगा जमुना गायब , मीठे पानी के झरने गायब , विकास ले के चाटोगे ? ये विकास किसके लिए ? कौन इससे लाभान्वित होगा ? अरे अभी ज़िंदा रहने का सवाल है। कितनी विडम्बना है कि आदमी को मशीन और मशीन को आदमी बनाए जाने का उपक्रम चल रहा है और इसी को विकास कहा जा रहा।
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हमें नही चाहिए
गर्मी आने वाली है। पूरे राष्ट्रीय राजधानी परिक्षेत्र (एन सी आर) में पानी के लिए हाहाकार मचने वाला है। फरीदाबाद से गाजियाबाद तक भूगर्भ जल विषैला होता जा रहा। यहाँ पीने का पानी बोतल में मिलता है। कंपनियों की पौ बारह है।भूजल का सीधा ताल्लुक पेड़ों के सूखने से है। जैसे जैसे भूजल नीचे जायेगा या विषैला होगा वैसे ही पेड़ों की जड़े पानी प्राप्त करने में कठिनाई महसूस करेगीऔर पानी के अभाव में या जहर के प्रभाव से पेड़ सूखने लगेगे। वह इलाके जहा भूजल खतरनाक ढंग से निम्न स्तर पर पहुच गया है वहा हरियाली का नामोनिशान ख़तम है। नदियों का जहरीला होना, पानी का कम होना, पारंपरिक तालाबो का ख़तम होना, भूजल के लिए शुभ नहीं। जमीन से इस कदर पानी का दोहन हो रहा कि थोड़े ही दिन में पेट्रोल और पानी के रेट बराबर हो जायेंगे। अभी पानी २५ रूपये लीटर और पेट्रोल ७० रूपये दूध ३० रुपये है। आज से २५ साल पहले यह कोई सोच भी नही सकता था।
शहद के छत्ते गायब , गौरैया के साथ गिद्ध और कौवे भी गायब , खेत खलिहान गायब , घर के आँगन गायब , रिश्ते नाते गायब , गंगा जमुना गायब , मीठे पानी के झरने गायब , विकास ले के चाटोगे ? ये विकास किसके लिए ? कौन इससे लाभान्वित होगा ? अरे अभी ज़िंदा रहने का सवाल है। कितनी विडम्बना है कि आदमी को मशीन और मशीन को आदमी बनाए जाने का उपक्रम चल रहा है और इसी को विकास कहा जा रहा।
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हमें नही चाहिए
बड़े बड़े कारखाने
जिसमे से निकलता है
जहरीला धुँआ
और फ़ैल जाता है
हवाओं में फिर दिल में
झौंस देता है
कोमल कोंपलों को
हमें नही चाहिए
चाँद की जमीन और पानी
धरती पर मीठे झरनों को
मुक्त कर दो
कोई भी तकनीक जिससे
मानवता का दलन
और प्रकृति का गलन
होता है तज दो
बिना किसी भाव के
बिना किसी लालच के
आने वाली पीढ़ियों की खातिर।
काश जमुना अपनी रौ में बहती रहती, विकास की छिन्न अवधारणा जमुना को ले डूबी।
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