गंदगी का निस्तारण समस्या का जड़मूल है। बाकी बातें अनुशासनहीनता और बेहूदा आदतों से जुडी हैं। एक बात स्पष्ट कर दूँ कि विलासी वर्ग द्वारा जितनी तीव्रता के साथ गंदगी पैदा की जाती है वह अत्यंत खतरनाक है। गरीबों में बेहूदापन हो सकता सभ्य तौर तरीके के विपरीत आचरण हो सकते हैं किन्तु उनका कचरा ऐसी समस्या नही पैदा करता जिसका समाधान न हो।
'हरी धरती' उत्तर आधुनिकता के पश्चात उस आन्दोलन की शुरुआत है जिसका लक्ष्य "संरक्षणात्मक विकास" है. जटिलता की जगह सरलता कुटिलता की जगह साधुता कृत्रिमता की जगह प्राकृतिक तथा लौहपिजरे से मुक्ति के प्रति प्रतिबद्ध. जल जंगल जमीन व जानवरों के संरक्षण हेतु ऐसा अभियान जो दमन की परवाह किये बिना अपने अंजाम तक पहुचने के लिए कटिबद्ध है.
गुरुवार, 2 अक्टूबर 2014
गंदगी का निस्तारण समस्या का जड़मूल है।
लेबल:
#CleanIndia
शुक्रवार, 12 सितंबर 2014
कश्मीर में बाढ़ और विकास
विकास का पैमाना मानव की चेतना, सहनशीलता और सामंजस्य करने की क्षमता पर आधारित है इसके पश्चात कोई भी प्रक्रिया सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ती है।
कश्मीर में लगभग पचास के आस पास झीलें और तालाबों के ऊपर कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए गए। मुम्बई में मीठी नदी की तरह यहाँ भी पानी के परंपरागत निकासी स्रोत्तों पर अतिक्रमण कर उन्हें समाप्त कर दिया गया।
आज प्राकृतिक वस्तुओं पर जिस तरह से अतिक्रमण कर वहाँ होटल, मॉल बिल्डिंग बनाकर वह की सुंदरता और वहां की जीवोक्रेसी को ख़त्म किया जा रहा प्रकृति का रिएक्शन उसी का परिणाम है।
इन प्राकृतिक आपदाओं के माध्यम से प्रकृति ने अपनी बात मानव के समक्ष रखी है।प्रकृति को विनम्रता पूर्वक समझना और उसके हिसाब से चलने में ही मानव का अस्तित्व कायम रह पायेगा अन्यथा डायनासौर की गति को प्राप्त करने में देर नहीं होगी।
कश्मीर में लगभग पचास के आस पास झीलें और तालाबों के ऊपर कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए गए। मुम्बई में मीठी नदी की तरह यहाँ भी पानी के परंपरागत निकासी स्रोत्तों पर अतिक्रमण कर उन्हें समाप्त कर दिया गया।
आज प्राकृतिक वस्तुओं पर जिस तरह से अतिक्रमण कर वहाँ होटल, मॉल बिल्डिंग बनाकर वह की सुंदरता और वहां की जीवोक्रेसी को ख़त्म किया जा रहा प्रकृति का रिएक्शन उसी का परिणाम है।
इन प्राकृतिक आपदाओं के माध्यम से प्रकृति ने अपनी बात मानव के समक्ष रखी है।प्रकृति को विनम्रता पूर्वक समझना और उसके हिसाब से चलने में ही मानव का अस्तित्व कायम रह पायेगा अन्यथा डायनासौर की गति को प्राप्त करने में देर नहीं होगी।
बुधवार, 16 जुलाई 2014
तालाब खतम, पानी खतम, गाँव कैसे ज़िंदा रहेगा ?

सिउपूजन दास कहते थे...
छंगापुरा एक दीप है बसहि गढ़हिया तीर।
पानी राखो कहि गए सिउपूजन दास कबीर।।
हमारे गांव के उत्तर की तरफ बड़का तारा करीब बीस बीघे में फैला हुआ। फिर पंडा वाला तारा पूरब में दामोदरा और मिसिर का तारा कोने में तलियवा। पच्छिम में दुर्बासा तारा, दक्खिन में गुड़ियवा तारा। इसके अलावा हर घर के आस पास फैले खाते और बड़े बड़े गड़हे वाटर हार्वेस्टिंग के जबरदस्त स्रोत पूर्वजों द्वारा आने वाली पीढ़ियों के लिए बनाये गए थे। बाग़ बगीचों से लदा फंदा और पानी से भरे कुंओ और ठंडी ठंडी हवाओं वाला हमारा गाँव बारहो महीने खुशहाली के गीत गौनही गाता था।
समय बदला पैंडोरा बॉक्स खुला। लालच और ईर्ष्या के कीट बॉक्स में से निकल कर हमारे गाँव में शहर वाली सड़क और टीवी के रस्ते घुस गए।
कल मेरा भतीजा आया था बता रहा था कि चाचा अपना कुंआ अब सूख रहा है। गाँव में तकरीबन सारे कुंये सूख गए हैं। लोगों ने अब सबमर्सिबल लगवा लिए है बटन दबाया पानी आ गया। पंडा वाला तालाब को पाट दिया गया है वहा दीवार उठा दी गई है। लल्लू कक्का ने घर के सामने का खाता पाट दिया है। गुड़ियवा और तलियये वाला तालाब खेत में बदल गया है। बाग़ को काट काट लोग लकड़ियां बेंच पईसा बना रहे। अब गाँव में हर घर टीवी है रोज बैटरी चार्ज कराने को लेकर झगड़ा मचा रहता है। बाप खटिया में खांसता रहता है बच्चे मोबाइल में रिमोट से लहंगा उठाने वाला गाना सुनने में मस्त। गाँव में कंक्रीट के चालनुमा मकान सरकारी आवास योजना से बन कर तैयार हो रहे जिसे ग्राम प्रधान कमीशन लेकर बाँट रहा। हर घर में अलगौझी। भाई भाई से छोड़िये बाप अलगौझी अऊर अबकी गाँव में छंगू की मेहरारू छंगुआ के जेल भिजवाई के केहु अऊर के साथ जौनपुर भागी है। इज्जत आबरू मान मर्यादा सब खत्म।
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तालाब खतम
पानी खतम
गाँव कैसे ज़िंदा रहेगा ?
सोमवार, 26 मई 2014
शैक्षिक गुणवत्ता, मुनाफा और विदक्षता का दुष्चक्र।
वर्तमान शिक्षा
व्यवस्था "विदक्षता" (Deskilling) के दुष्चक्र में फंस गयी है। शैक्षिक
प्रसार के नाम पर पूरी व्यवस्था को निजी संस्थाओं के हवाले किया जा रहा
है। ऐसे में शैक्षिक गुणवत्ता का स्थान मुनाफे ने ले लिया है। येन केन
प्रकरेण मुनाफा प्राप्त करना ही संस्थाओं का अंतिम उद्देश्य बन चुका है।
कोई भी शराब बनाने वाला, मिठाई बनाने वाला,कबाड़ व्यापारी, माफिया, नेता,
अपराधी देश हित या समाज हित को आड़ बनाकर पैसे के जोर से शिक्षाविद बन जाते
है और महज पैसा बनाने के लिए स्कूल कॉलेज
या यूनिवर्सिटी खोल लेते है।
लग्जरियस इंफ्रास्ट्रक्चर, फर्जी आंकड़े, फर्जी सूचनाओं एवं दलालो के सहारे कालाबाजारी कर "इन्टेक" पूरा करते है। इस प्रक्रिया में दूर दराज के छात्रों को बहला फुसलाकर उन्हें सुनहरे सपने दिखा कर उन्हें संस्थाओं में एजेंट को मोटी रकम देकर एडमिट किया जाता है . फिर उनकी पढ़ाई लिखाई के लिए अकुशल शिक्षक ( हालांकि कागजी आंकड़ों में ये संस्थान हाई क्वालिफाइड टीचर्स दिखाते है जो अधिकतर उस संस्थान के निरीक्षण के समय भौमिक सत्यापन हेतु मौजूद रहते है और निश्चित रकम लेते है) रखे जाते है। ये अकुशल शिक्षक या तो " फ्रेशर" होते है अल्प जानकारी रखने वाले या कम वेतन पर काम करने को "विवश" लोग। मजे की बात तो यह है कि निजी संस्थाओं में हाई डिग्री होल्डर के ऊपर हमेशा निकले जाने की तलवार लटकती रहती है क्योंकि संस्थान के मालिक को मनोवैज्ञानिक भय होता है की हाई प्रोफाइल टीचर उसके कंट्रोल में नही आएगा और अधिक वेतन की मांग करेगा। इसलिए ये लोग साक्षात्कार के दौरान ही हाई क्वालिफाइड कैंडिडेट को पहले से बाहर कर देते हैं। इस प्रकार एक अकुशलता का चक्र बनता है। अकुशल शिक्षक के अध्यापन से जो छात्र तैयार होंगे वो भी गुणवत्ता विहीन होंगे और जब ये क्षेत्र में काम करने जाएंगे चाहे वह उत्पादन हो या सेवा क्षेत्र वहा भी गुणवत्ता मानको से नीचे ही रहेगी। परिणाम यह होगा कि इनके द्वारा निर्मित उत्पाद या दी गई सेवा राष्ट्रीय/ अंतराष्ट्रीय मानको पर खरी नही उतरेगी और प्रतिद्वंदिता में कही पीछे छूट जाएगी। इसका असर अर्थव्यवस्था पर पडेगा और अर्थव्यवस्था दबाव में आ जाएगी। पुनश्च बड़े पैमाने पर छंटनी की प्रक्रिया में ये अकुशल लोग भारी मात्र में निकाले जाते है जो एक्सपीरियंस के आधार पर किसी न किसी निजी शैक्षणिक संस्था में फिर पढ़ाने का कार्य करने लगते है वो भी कम वेतन पर। इस प्रक्रिया में अच्छे शिक्षको को नौकरी से हाथ धोना पड़ता है। यह ठीक उसी तरह से है कि ब्लैक मनी वाइट मनी को चलन से बाहर कर देता है।
लग्जरियस इंफ्रास्ट्रक्चर, फर्जी आंकड़े, फर्जी सूचनाओं एवं दलालो के सहारे कालाबाजारी कर "इन्टेक" पूरा करते है। इस प्रक्रिया में दूर दराज के छात्रों को बहला फुसलाकर उन्हें सुनहरे सपने दिखा कर उन्हें संस्थाओं में एजेंट को मोटी रकम देकर एडमिट किया जाता है . फिर उनकी पढ़ाई लिखाई के लिए अकुशल शिक्षक ( हालांकि कागजी आंकड़ों में ये संस्थान हाई क्वालिफाइड टीचर्स दिखाते है जो अधिकतर उस संस्थान के निरीक्षण के समय भौमिक सत्यापन हेतु मौजूद रहते है और निश्चित रकम लेते है) रखे जाते है। ये अकुशल शिक्षक या तो " फ्रेशर" होते है अल्प जानकारी रखने वाले या कम वेतन पर काम करने को "विवश" लोग। मजे की बात तो यह है कि निजी संस्थाओं में हाई डिग्री होल्डर के ऊपर हमेशा निकले जाने की तलवार लटकती रहती है क्योंकि संस्थान के मालिक को मनोवैज्ञानिक भय होता है की हाई प्रोफाइल टीचर उसके कंट्रोल में नही आएगा और अधिक वेतन की मांग करेगा। इसलिए ये लोग साक्षात्कार के दौरान ही हाई क्वालिफाइड कैंडिडेट को पहले से बाहर कर देते हैं। इस प्रकार एक अकुशलता का चक्र बनता है। अकुशल शिक्षक के अध्यापन से जो छात्र तैयार होंगे वो भी गुणवत्ता विहीन होंगे और जब ये क्षेत्र में काम करने जाएंगे चाहे वह उत्पादन हो या सेवा क्षेत्र वहा भी गुणवत्ता मानको से नीचे ही रहेगी। परिणाम यह होगा कि इनके द्वारा निर्मित उत्पाद या दी गई सेवा राष्ट्रीय/ अंतराष्ट्रीय मानको पर खरी नही उतरेगी और प्रतिद्वंदिता में कही पीछे छूट जाएगी। इसका असर अर्थव्यवस्था पर पडेगा और अर्थव्यवस्था दबाव में आ जाएगी। पुनश्च बड़े पैमाने पर छंटनी की प्रक्रिया में ये अकुशल लोग भारी मात्र में निकाले जाते है जो एक्सपीरियंस के आधार पर किसी न किसी निजी शैक्षणिक संस्था में फिर पढ़ाने का कार्य करने लगते है वो भी कम वेतन पर। इस प्रक्रिया में अच्छे शिक्षको को नौकरी से हाथ धोना पड़ता है। यह ठीक उसी तरह से है कि ब्लैक मनी वाइट मनी को चलन से बाहर कर देता है।
फिर वही विदक्षता का दुष्चक्र .
यहाँ एक बात और गौर करने लायक है कि
इन संस्थाओं में कार्यरत शिक्षक एवं संस्था प्रमुख के बीच सामंत और दास
जैसा रिश्ता होता है शिक्षक चाहे कितना भी प्रशिक्षित और योग्य हो संस्था
प्रमुख हमेशा उसे हिकारत से देखता है कई बार उसे उसकी हैसियत याद करवाता
है। सारा का सारा खेल मुनाफे का है कुल मिलाकर चाटुकारिता भ्रष्टाचार के
सहारे पूंजीपतियों ने शिक्षा व्यवस्था को अत्यंत दूषित एवं भ्रष्ट कर दिया
है जो पूरे देश में फैले भ्रष्टाचार और बिगड़ी अर्थव्यवस्था का मूल कारण
है।
लेबल:
education system
शुक्रवार, 21 मार्च 2014
अपने आँचल में कूड़ा, विष्ठा और जहर को समेटे यमुना
दिल्ली जाते हुये कालिंदी कुंज पुल से जब आप बांयी ओर निगाह डालते हैं तो एक बारगी लगता है कि बजबजाते सीवर के ऊपर से गुजर रहे हो। पिघले तारकोल-सा काली यमुना और उस पर झक सफेद झाग की मोटी चादर ऐसा लगता है कि ढेर सारे मरणासन्न जानवर फेंचकुर छोड़ रहे हो। एक कारुणिक दृश्य दिखता है गंदे आर्सेनिक युक्त नाले और सीवर यहाँ यमुना का नाम प्राप्त कर लेते है और यमुना सफ़ेद झाग के कफ़न में दफ़न हो जाती है। छोटी और सहायक नदियों के और भी बुरे हाल हैं। हिंडन नदी जिसके तट पर सैंधव सभ्यता पनपी वह भी कब की मृत घोषित है। अपने आँचल में कूड़ा, विष्ठा, जहर को समेटे ये नदियां तथाकथित विकास के नीचे दबी अंतिम साँसे लेने को अभिशप्त हैं।
गर्मी आने वाली है। पूरे राष्ट्रीय राजधानी परिक्षेत्र (एन सी आर) में पानी के लिए हाहाकार मचने वाला है। फरीदाबाद से गाजियाबाद तक भूगर्भ जल विषैला होता जा रहा। यहाँ पीने का पानी बोतल में मिलता है। कंपनियों की पौ बारह है।भूजल का सीधा ताल्लुक पेड़ों के सूखने से है। जैसे जैसे भूजल नीचे जायेगा या विषैला होगा वैसे ही पेड़ों की जड़े पानी प्राप्त करने में कठिनाई महसूस करेगीऔर पानी के अभाव में या जहर के प्रभाव से पेड़ सूखने लगेगे। वह इलाके जहा भूजल खतरनाक ढंग से निम्न स्तर पर पहुच गया है वहा हरियाली का नामोनिशान ख़तम है। नदियों का जहरीला होना, पानी का कम होना, पारंपरिक तालाबो का ख़तम होना, भूजल के लिए शुभ नहीं। जमीन से इस कदर पानी का दोहन हो रहा कि थोड़े ही दिन में पेट्रोल और पानी के रेट बराबर हो जायेंगे। अभी पानी २५ रूपये लीटर और पेट्रोल ७० रूपये दूध ३० रुपये है। आज से २५ साल पहले यह कोई सोच भी नही सकता था।
शहद के छत्ते गायब , गौरैया के साथ गिद्ध और कौवे भी गायब , खेत खलिहान गायब , घर के आँगन गायब , रिश्ते नाते गायब , गंगा जमुना गायब , मीठे पानी के झरने गायब , विकास ले के चाटोगे ? ये विकास किसके लिए ? कौन इससे लाभान्वित होगा ? अरे अभी ज़िंदा रहने का सवाल है। कितनी विडम्बना है कि आदमी को मशीन और मशीन को आदमी बनाए जाने का उपक्रम चल रहा है और इसी को विकास कहा जा रहा।
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हमें नही चाहिए
गर्मी आने वाली है। पूरे राष्ट्रीय राजधानी परिक्षेत्र (एन सी आर) में पानी के लिए हाहाकार मचने वाला है। फरीदाबाद से गाजियाबाद तक भूगर्भ जल विषैला होता जा रहा। यहाँ पीने का पानी बोतल में मिलता है। कंपनियों की पौ बारह है।भूजल का सीधा ताल्लुक पेड़ों के सूखने से है। जैसे जैसे भूजल नीचे जायेगा या विषैला होगा वैसे ही पेड़ों की जड़े पानी प्राप्त करने में कठिनाई महसूस करेगीऔर पानी के अभाव में या जहर के प्रभाव से पेड़ सूखने लगेगे। वह इलाके जहा भूजल खतरनाक ढंग से निम्न स्तर पर पहुच गया है वहा हरियाली का नामोनिशान ख़तम है। नदियों का जहरीला होना, पानी का कम होना, पारंपरिक तालाबो का ख़तम होना, भूजल के लिए शुभ नहीं। जमीन से इस कदर पानी का दोहन हो रहा कि थोड़े ही दिन में पेट्रोल और पानी के रेट बराबर हो जायेंगे। अभी पानी २५ रूपये लीटर और पेट्रोल ७० रूपये दूध ३० रुपये है। आज से २५ साल पहले यह कोई सोच भी नही सकता था।
शहद के छत्ते गायब , गौरैया के साथ गिद्ध और कौवे भी गायब , खेत खलिहान गायब , घर के आँगन गायब , रिश्ते नाते गायब , गंगा जमुना गायब , मीठे पानी के झरने गायब , विकास ले के चाटोगे ? ये विकास किसके लिए ? कौन इससे लाभान्वित होगा ? अरे अभी ज़िंदा रहने का सवाल है। कितनी विडम्बना है कि आदमी को मशीन और मशीन को आदमी बनाए जाने का उपक्रम चल रहा है और इसी को विकास कहा जा रहा।
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हमें नही चाहिए
बड़े बड़े कारखाने
जिसमे से निकलता है
जहरीला धुँआ
और फ़ैल जाता है
हवाओं में फिर दिल में
झौंस देता है
कोमल कोंपलों को
हमें नही चाहिए
चाँद की जमीन और पानी
धरती पर मीठे झरनों को
मुक्त कर दो
कोई भी तकनीक जिससे
मानवता का दलन
और प्रकृति का गलन
होता है तज दो
बिना किसी भाव के
बिना किसी लालच के
आने वाली पीढ़ियों की खातिर।
लेबल:
यमुना
मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014
सेकुलर/कम्युनल बनाम परहित सरिस धरम नही भाई
किसी भी देश और समाज
की कुछ संरचनाये और उन पर आधारित कुछ व्यवस्थाये होती है जिनके सहारे व्यक्ति के जीवन की
आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित होती है . परिवार, जाति, धर्म संविधान, कानून
इत्यादि इन के उदाहरण हैं. ये संरचनाये/व्यवस्थाये जब तक व्यक्ति की आवश्यकताओ की
पूर्ति कर रही होती है तभी तक जीवित रहती है जिस दिन उन्होने ऐसा करना छोड दिया
उसी दिन गैर प्रासंगिलक और मृत हो जाती है. यदि कोई समाज या देश ऐसी गैरप्रासंगिक
और प्रेत व्यवस्थाओ के सहारे चलने की कोशिश करता है तो वह भी उसी प्रेतगति को
प्राप्त होने लगता है.
मेरे लिये सेकुलरिज्म
और कम्युनलिज्म दो शब्दो से ज्यादा कुछ नही है. इनकी सुविधानुसार व्याख्या ही
समस्या का मूल कारण है. इज्म(वाद) ही सारे विवादो का जन्मदाता है. व्यवस्था मे
अनरेस्ट पैदा करने वाला है. असत्य प्रयोग के दौरान सेकुलरिज्म भी उतना ही खतरनाक
है जितना कि कम्युनलिज्म. जिस भी तथ्य या शब्द को प्रतिष्ठित किया जायेगा वही
दूसरे की हीनता मे किसी न किसी तरह का योगदान देने वाला बन जाता है. हर शब्द
व्यवस्था वस्तु की अपनी खूबियां होती है उन खूबियों के उपयोग से हम मानवता को सुखी
एवम समृद्ध बना सकते है.
चाहे धर्म हो या
अन्य कोई सामाजिक संरचना, बजाय कि संरचनागत होने के यदि प्रतिष्ठा के वितरण पर
ध्यान केन्द्रित किया जाय और असमान प्रतिष्ठा वितरण पर और उससे होने वाले लाभों पर
रोक लगाने की कोशिश की जाय तो वह ज्यादा बेहतर होगा. क्योंकि समाज को चलाने के
लिये कोई न कोई संरचना तो चाहिये ही.अब चाहे वह व्यवस्था जाति/धर्म हो या
वर्ग/पंथनिर्पेक्षता. यहा मै गान्धी जी को उद्धरित करना चाहुंगा कि एक वकील और एक
नाई के कार्यों की प्रतिष्ठा मे अंतर नही होना चाहिये क्योंकि दोनो की बराबर
आवश्यकता समाज को है दोनो के बिना व्यवस्था चलाना कठिन होगा. अत: प्रतिष्ठा का
मुद्दा मुख्य है बजाय कि साम्रदायिकता या धर्मनिर्पेक्षता.
सवाल इस बात का है
कि कोई कैसे किसी जाति,धर्म,समुदाय,वर्ग या लिंग का होने मात्र से प्रतिष्ठित हो
जाता है, ऊंचा नीचा हो जाता है? जहां तक मेरा मानना है कि प्रतिष्ठा का एक मात्र
आधार होना चाहिये और वह है “परहित”. सेकुलर/कम्युनल के चक्कर मे “परहित छूट जाता
है. मेरे लिये मेरे धार्मिक होने मे यही परहित निहित है. परहित सरिस धरम नही भाई.
क्योंकि इसी परहित के सहारे हम सामूहिक जीवन को सुनिश्चित कर सकते है और यही बात
इस धरती पर मानव जीवन की उत्तरजीविता की गारंटी है.
लेबल:
सेकुलर/कम्युनल
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