जिस तरह से मनमाने ढंग और लाठी के जोर से जमीन से पानी खींचा जा रहा है उससे यह लगता है
कि वह दिन दूर नही जब सारा देश बंजर रेगिस्तान में बदल जाय. देश में हर साल 230 क्यूबिक किमी. भूजल का इस्तेमाल होता है। भारत दुनिया का सबसे ज्यादा भूजल इस्तेमाल करने वाला देश है। भूजल के अंधाधुंध दोहन को रोकने के लिए कोई कारगर कानूनी व्यवस्था न होने से यह मर्ज बढ़ता जा रहा है। देश के सिंचित क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाला 60 फीसदी पानी भूजल स्रोत पर निर्भर है। पेयजल की 80 फीसदी निर्भरता भूजल पर है। केंद्रीय भूजल बोर्ड की ओर से देश भर में 2004 में किए गए एक सर्वे के मुताबिक 29 फीसदी ग्राउंडवॉटर ब्लॉक की हालत काफी गंभीर है या उनका जरूरत से ज्यादा दोहन हो रहा है। लेकिन गंभीर संकट यह है कि पिछले एक दशक में जिन वॉटर ब्लॉक का जरूरत से ज्यादा दोहन हो रहा है, उनकी तादाद तीन गुना बढ़ गई है। अब इस दोहन का सीधा ताल्लुक पदों के सूखने से है.जैसे जैसे भूजल नीचे जायेगा वैसे ही पेड़ों की जड़े पानी प्राप्त करने में कठिनाई महसूस करेगी. और पानी के अभाव में पेड़ सूखने लगेगे. वह इलाके जहा भूजल खतरनाक ढंग से निम्न स्तर पर पहुच गया है वहा हरियाली का नामोनिशान ख़तम है. नदियों का जहरीला होना, पानी का कम होना, पारंपरिक तालाबो का ख़तम होना, भूजल के लिए शुभ नहीं. अगर समय रहते न चेते तो भूजल के खात्मे के साथ मानवता भी ख़तम हो जायेगी. इसमें कोई दो राय नही.
कि वह दिन दूर नही जब सारा देश बंजर रेगिस्तान में बदल जाय. देश में हर साल 230 क्यूबिक किमी. भूजल का इस्तेमाल होता है। भारत दुनिया का सबसे ज्यादा भूजल इस्तेमाल करने वाला देश है। भूजल के अंधाधुंध दोहन को रोकने के लिए कोई कारगर कानूनी व्यवस्था न होने से यह मर्ज बढ़ता जा रहा है। देश के सिंचित क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाला 60 फीसदी पानी भूजल स्रोत पर निर्भर है। पेयजल की 80 फीसदी निर्भरता भूजल पर है। केंद्रीय भूजल बोर्ड की ओर से देश भर में 2004 में किए गए एक सर्वे के मुताबिक 29 फीसदी ग्राउंडवॉटर ब्लॉक की हालत काफी गंभीर है या उनका जरूरत से ज्यादा दोहन हो रहा है। लेकिन गंभीर संकट यह है कि पिछले एक दशक में जिन वॉटर ब्लॉक का जरूरत से ज्यादा दोहन हो रहा है, उनकी तादाद तीन गुना बढ़ गई है। अब इस दोहन का सीधा ताल्लुक पदों के सूखने से है.जैसे जैसे भूजल नीचे जायेगा वैसे ही पेड़ों की जड़े पानी प्राप्त करने में कठिनाई महसूस करेगी. और पानी के अभाव में पेड़ सूखने लगेगे. वह इलाके जहा भूजल खतरनाक ढंग से निम्न स्तर पर पहुच गया है वहा हरियाली का नामोनिशान ख़तम है. नदियों का जहरीला होना, पानी का कम होना, पारंपरिक तालाबो का ख़तम होना, भूजल के लिए शुभ नहीं. अगर समय रहते न चेते तो भूजल के खात्मे के साथ मानवता भी ख़तम हो जायेगी. इसमें कोई दो राय नही.
सही बात कही आपने
जवाब देंहटाएंएकदम सटीक आंकलन है किन्तु क़ानून ऐसा नहीं करा पायेगा क्योंकि क़ानून तोड़ने वाले वही समृद्ध लोग होंगे जो जल -दोहन बेशर्मी के साथ कर रहे हैं.जन-चेतना ही इस कार्य को कर सकेगी.इस हेतु लोगों को हवन करने की आदत डालनी होगी जिससे वर्षा -नियमन होगा तथा वर्षा जल के संचयन की भी वैसी ही व्यवस्था करनी होगी जैसी पहले थी जब दिल्ली से कलकत्ता तक जल -मार्ग से व्यापार होता था. नदियों को प्रदूषण से बचा कर गहरा करना होगा. इसके अतिरिक्त कोई और विकल्प नहीं है.
जवाब देंहटाएंगभीर चिंतन का विषय है... इससे बचाव के लिए वर्षा के जल को संचय करना भी एक अच्छा विकल्प है.
जवाब देंहटाएंजल ना होता तो जल जाता जीवन
जवाब देंहटाएंजल संरक्षण अत्यावश्यक है.
वर्तमान में पानी किल्लत है.
भविष्य में स्थिति गंभीरतम हो जाएगी.
सार्थक लेखन के लिए आभार ......
अब धीरे धीरे यह विषय संवेदनशील होता जा रहा है।
जवाब देंहटाएंsahi likha
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