अभी गणेशोत्सव बीता है आगे नवरात्रे आने वाले है यह त्योहार जीवन मे रंग भरते है प्रेम का, उल्लास का, भेदभाव से ऊपर उठने का मौका देते है प्रकृति को नजदीक से जानने व करीब जाने को प्रेरित करते है. किंतु हकीकत मे हो क्या रहा है???? इनके नाम पर गुंडे लोग चन्दावसूली और रंगबाजी करने लग जाते है चौराहो को खोदकर पंडाल खडे कर दिये जाते है किसी माई के लाल मे हिम्मत नही है जो इस गुन्डई के खिलाफ चू भी करे. और कोढ मे खाज कोई बडे नेता पोता को बुलाकर राजनैतिक सेटिंग को भी अंजाम दिया जाता है. पडो की पौ बारह होती है. इतने जोर जोर से जगराते है लाउड्स्पीकर बजते है कि छोटे बच्चो और बुजुर्गो पर अत्यधिक बुरा प्रभाव पडता है. घर मे महिलाये और पुरुष भी इन दिनो पहले से ज्यादा चिडचिडे हो जाते है. तो इस किसिम के उत्सव से किसके जीवन मे उल्लास आ रहा है. किसी के नही. आगे हाल और बुरा है प्लास्टर आफ पेरिस की मूर्तियो को नदियो या पवित्र सरोवरो मे विसर्जित करने की कुप्रथा नदियो और सरोवरो का विनाश करने मे विशेष भूमिका अदा कर रही है. यहा नशे मे टुन्न लोग मूर्तियो को लेकर आते है और सांस्कृतिक के साथ जल प्रदूषण करके चले जाते है.
अब आप लोग तय कीजिये कि क्या इसी तरह ये सब होता रहेगा. मैने एक पहल की है कि त्योहारो पर लाउड्स्पीकर का प्रयोग न किया जाय और मूर्तियो को जल मे ना वरन भूमि मे विसर्जित की जाय. एक शहर मे एक दो ही जगह एक मूर्ति की स्थापना की जाय और वही पूजा अर्चना के लिये प्रशासन व्यवस्था करे. इससे चन्दे की वसूली भी रुकेगी और व्यवस्था भी बनी रहेगी.
आइये इन कुरीतियो और प्रदूषणकारी व्यवस्था का बहिष्कार करके आने वाली पीढियो के लिये हरी धरती का निर्माण करे.
त्योहारो पर लाउड्स्पीकर का प्रयोग न किया जाय और मूर्तियो को जल मे ना वरन भूमि मे विसर्जित की जाय.
जवाब देंहटाएंhallaa bollll
निश्चय ही अनुकरणीय।
जवाब देंहटाएं