शुक्रवार, 12 सितंबर 2014

कश्मीर में बाढ़ और विकास

विकास का पैमाना मानव की चेतना, सहनशीलता और सामंजस्य करने की क्षमता पर आधारित है इसके पश्चात कोई भी प्रक्रिया सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ती है।
कश्मीर में लगभग पचास के आस पास झीलें और तालाबों के ऊपर कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए गए। मुम्बई में मीठी नदी की तरह यहाँ भी पानी के परंपरागत निकासी स्रोत्तों पर अतिक्रमण कर उन्हें समाप्त कर दिया गया।
आज प्राकृतिक वस्तुओं पर जिस तरह से अतिक्रमण कर वहाँ होटल, मॉल  बिल्डिंग बनाकर वह की सुंदरता और वहां की जीवोक्रेसी को ख़त्म किया जा रहा प्रकृति का रिएक्शन उसी का परिणाम है।
इन प्राकृतिक आपदाओं के माध्यम से प्रकृति ने अपनी बात मानव के समक्ष रखी है।प्रकृति को विनम्रता पूर्वक समझना और उसके हिसाब से चलने में ही मानव का अस्तित्व कायम रह पायेगा अन्यथा डायनासौर की गति को प्राप्त करने में देर नहीं होगी।