शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

कानपुर मे गंगा की दुर्दशा, 2500 करोड का खेल: प्रोफेसर विनोद तारे



कानपुर मे गंगा की धारा को निर्मल और अविरल बनाने के लिए 2500 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं फिर भी नतीजा सिफर है। पतित पावनी आज भी मैली हैं। कानपुर में गंगा का सबसे बुरा हाल है। यहां 400 करोड़ रुपए से ज्यादा का बजट खर्च हो चुका है फिर भी रोजाना गंगा में गिरने वाले 544.69 एमएलडी सीवरेज कचरे के शोधन की व्यवस्था नहीं है। टेनरी वेस्ट और शहर की गंदगी गंगा में बहाई जा रही है। इसकी सुध नगर निगम और प्रदूषण बोर्ड नहीं ले रहा है। आईआईटी के प्रोफेसर और नेशनल गंगा रिवर बेसिन अर्थारिटी के समन्वयक   के अनुसार गंगा एक्शन प्लान-1 और 2 में 2500 करोड़ रुपए का बजट जारी किया गया था। यह बजट ट्रीटमेंट प्लांट बनाने, चलाने, सफाई और जागरूकता अभियान में खत्म हुआ है फिर भी नतीजा शून्य रहा। गंगा मैली की मैली हैं। 
7000 करोड़ का प्रावधान
गंगा एक्शन प्लान के तहत 1985-2010 के बीच 1000 करोड़ रुपए खर्च हो गए हैं। 1500 करोड़ रुपए की दूसरी किश्त भी जारी हो चुकी है। संबंधित राज्यों का बजट आवंटित कर दिया गया है। यह बजट भी ट्रीटमेंट प्लांट पर खर्च किया जा रहा है। इससे बेहतर नतीजे मिलने की उम्मीद नहीं है। विश्व बैंक, केन्द्र सरकार ने गंगा के लिए 7000 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया है। जिसे अगले 10 साल में खर्च किया जाना है।
कन्नौज - वाराणसी के बीच सबसे ज्यादा गंदगी 
- कानपुर में 20 नालों के माध्यम से रोजाना 544.69 एमएलडी सीवरेज कचरा गंगा में गिर रहा है। 544.7 एमएलडी वेस्ट वाटर भी गंगा में जा रहा है। कन्नौज से वाराणसी के बीच लगभग 450 किलोमीटर तक गंगा सबसे ज्यादा प्रदूषित है। यहां से 75 फीसदी म्यूनिसिपल सीवेज और 25 फीसदी औद्योगिक कचरा गंगा में गिरा रहा है। 
रोज 544.69 एमएलडी कचरे का शोधन नहीं 
- जाजमऊ में तीन ट्रीटमेंट प्लान बने हुए हैं। पांच एमएलडी के ट्रीटमेंट प्लांट में चार एमएलडी, 130 एमएलडी के प्लांट में 60 एमएलडी और 36 एमएलडी के प्लांट में 22-26 एमएलडी कचरा जा रहा है, जो मानक से कम है। तीनों ट्रीटमेंट प्लांट को बनाने में 55 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। संचालन में करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं। फिर भी रोजना निकलने वाले 544.69 एमएलडी कचरे का शोधन नहीं हो पा रहा। रोजना 90 एमएलडी कचरा ही शोधित किया जा रहा है। 
फिर करोड़ों का बजट बहाने की तैयारी
- जाजमऊ में 43 एमएलडी, बिनगवां में 210 एमएलडी, बनियापुरवा में 15 एमएलडी और सजारी, सनिगवां में 42 एमएलडी का सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाया जा रहा है, जिसे आईआईटी के वैज्ञानिकों ने बंद करने की सलाह दी है। उनका कहना है कि पहले प्लांट चलाने, रखरखाव के लिए बजट की व्यवस्था कर ली जाए फिर प्लांट बनाया जाए। नहीं तो करोड़ों रुपए का बजट
बेकार जाएगा। भविष्य में पांडु नदी पर 126 एमएलडी, बिनगवां में 115 एमएलडी का ट्रीटमेंट प्लांट बनाया जाना है। यह भी बजट बहाने का तरीका है। 
सहायक नदियां सूखीं, कचरा जमा
- महुआ , काली , रिंद और पांडु नदी सूख गई हैं। इससे गंगा का बहाव कम हो गया है। कचरा जमा हो रहा है। पानी में कीड़े पड़ने लगे हैं। इससे हरिद्वार और कुंभ में स्नान करने वाले श्रद्धालुओं को दिक्कत होती है। गंगा में गिरने वाली घाघरा, राप्ती, कोसी, गंडक, गोमती और यमुना नदी का बहाव भी कम हो गया है। 
गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने का माडल बनाया जा रहा है, जिसे अगले दो साल में पर्यावरण मंत्रालय को सौंपा जाएगा। पहले माडल में ट्रीटमेंट का संचालन पीपीपी माडल पर करने का सुझाव दिया गया है। यूपी के कानपुर सहित 11 राज्य के 200 शहरों में लगे ट्रीटमेंट प्लांट ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। सीवरेज, टेनरी, पेपर मील, डिस्टेलरी, चीनी मिलों का कचरा सीधे गंगा में जा रहा है, जो खतरनाक है। गंगा में मिलने वाली काली नदी और रामगंगा भी प्रदूषण की बड़ी वजह है। इनके पानी के शोधन की व्यवस्था करनी होगी।
.....साभार अमर उजाला