गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

उपभोग की अत्यधिक विषमताओ से हम धरती को निर्जीविता की और धकेल रहे है.



यदि आप अपनी आवश्यकता से अधिक प्रकृति के संसाधनों का उपभोग करते है तो आप जाने
अनजाने में ऐसा पाप करते है जिसका प्रायश्चित्त संभव नही है. आपका मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे या चर्च जाना चोरी सीना जोरी वाली बात होगी. आप यह तर्क देगे कि मै अपनी मर्जी और पैसे के मुताबिक़ कुछ भी उपभोग करने के लिए स्वतंत्र हूँ तो यह निहायत नीच एवं बेहूदा तर्क है. तह एक किसिम की डकैती है. डकैतों के पास लोगो को लूटने का सामर्थ्य  है तो क्या उनका कृत्य जायज है? नही न, तो आपका कृत्य जायज़ कैसे हो सकता है.
1960 से 2006 तक के आकडे प्रदर्शित करते  है कि जनगणना वृद्धि के अनुपात में प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग वैश्विक स्तर पर  तीन गुना हुआ है धातुओ  का उत्पादन छह गुना, खनिज तेल आठ गुना तथा प्राकृतिक  गैस चौदह गुना हो गयी है. एक औसत यूरोपीय 43 किलोग्राम प्राकृतिक  संसाधन प्रतिदिन उपभोग करता है जबकि एक औसत अमेरिकी 88 किलोग्राम उपभोग करता है
मानव द्वारा उपभोग की मात्र इतनी अधिक है कि उसे पूरा करने के लिए एक तिहाई प्रथ्वी की और अधिक आवश्यकता है.विश्व के सात प्रतिशत लोग पचास प्रतिशत  का उत्सर्जन करते है जबकि पांच प्रतिशत विश्व की आबादी कुल प्राकृतिक संसाधनों के खपत का बत्तीस प्रतिशत व्यय करती है.
उपभोग में इतनी ज्यादा विषमता है कि धनी देशो के 20 प्रतिशत नागरिक ...
1) कुल उत्पादन का 45 मछली मांस का खा जाते  है
2) कुल ऊर्जा 58 प्रतिशत इस्तेमाल करते है.
3)कुल संचार के साधनों का 74 प्रतिशत प्रयोग करते है 
4) कुल कागजों का 84 प्रतिशत प्रयोग करते है.
5) कुल वाहनों का 87 प्रतिशत इस्तेमाल करते है.
उपभोग की अत्यधिक विषमताओ से  हम धरती  को  निर्जीविता  की और धकेल रहे है. अभी भी समय है चेतने का यदि इस कगार पर आकर हम नही चेते तो प्रकृति  हमें दुबारा मौका नही देगी.






मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

गंगा से जुड़े महत्वपूर्ण आंकड़े

गंगा से जुड़े महत्वपूर्ण आंकड़े  
१.गंगा में गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक प्रतिदिन १४४.२
मिलियन क्यूबिक मलजल प्रवाहित किया जाता है.
२. गंगा में लगभग ३८४० नाले गिरते है.
३.गंगा तट पर स्थापित औद्योगिक इकाईया प्रतिदिन ४३० मिलियन लीटर जहरीले अपशिष्ट का उत्सर्जन करती है जो सीधे गंगा में बहा दिया जाता है.

४. लगभग १७२.५ हजार टन कीटनाशक रसायन और खाद  हर वर्ष गंगा में पहुचता है.
५.वर्तमान समय में गंगा में  डालफिन लुप्तप्राय है. उत्तर प्रदेश  में मात्र १०० बची है.
६.गंगा किनारे ३ किलोमीटर के दायरे में धोबीघाट पाए जाते है जो ४० से ६० प्रतिशत फास्फोरस डिटर्जेंट के माध्यम से पहुचा रहे है.
७. गंगा बेसिन में केवल १४.३ परसेंट वन शेष रह गए है.

अब आंकड़ो के अलावा आपसे कुछ कहना है.
इन आंकड़ो को देख कर क्या आपके मन में गंगा के लिए कुछ करने का विचार आया है यदि हां तो अपने आस पास लोगो से गंगा के बारे में चर्चा  कीजिये और इसे व्यावहारिक रूप देने का प्रयास करिए.

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

प्लास्टिक की 'निपटान' एक मिथक है

जब आप शापिंग  करके घर आते हो तो आपके साथ प्लास्टिक की थैलियो में ढेर सारा सामान होता है . तकरीबन हर सामान के लिए प्लास्टिक की थैली होती है आपके पास. आप को पालीथीन काफी सुविधाजनक लगती है. किन्तु आप बहुत बड़ी भूल कर रहे है. आप आने वाली पीढियों के लिए घातक योगदान कर रहे है.वह  योगदान है, प्लास्टिक  प्रदूषण जिसके प्रभाव  की आप कल्पना नहीं करते.
 प्लास्टिक आज के समय का सबसे जहरीला प्रदूषक है. एक गैर सड़नशील जहरीले रसायन युक्त   पदार्थ से निर्मित होने के कारण प्लास्टिक, पृथ्वी, हवा और पानी  हर जगह व्याप्त है. किसी भी तरीके से इसका सुरक्षित निपटान संभव नही है.
प्लास्टिक के  उत्पादन और निपटान के दौरान पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुचाता है प्लास्टिक अपने  उत्पादन के चरण से ही प्रदूषण फैलाता  है.  बेंजीन और विनाइल  क्लोराइड के रूप में प्लास्टिक में मिले होते है जिन्हें  कैंसर का कारण जाना जाता है, जबकि कई अन्य गैसों और तरल हाइड्रोकार्बन कि पृथ्वी और हवा को दूषित करती  है. . हानिकारक प्लास्टिक के उत्पादन के दौरान उत्सर्जित पदार्थों इथाइल  ऑक्साइड बेंजीन, और जैलीन वे प्रमुख रसायन जो वातावरण को  बेहद जहरीला कर रहे हैं और पृथ्वी पर सभी प्रजातियों के लिए  प्राणियों गंभीर खतरा बनते जा रहे  है.  साथ ही साथ इन रसायनों से जन्म दोष, कैंसर,  तंत्रिका तंत्र का क्षरण  और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली, रक्त और गुर्दे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. हैं. प्लास्टिक की रीसाइक्लिंग के दौरान भी यही रसायन दुगुनी मात्र में उत्सर्जित होते है. 
रासायनिक पदार्थों के मामले में  प्लास्टिक की 'निपटान' एक मिथक है. एक बार प्लास्टिक निर्मित होता है तो वह सदा के लिए बना रहता है. प्लास्टिक निपटान करने की  किसी भी तरह  की कोशिश प्रदूषण को और बढ़ाना है.  एक जहरीले कचरे का पुनर्चक्रण केवल खतरनाक सामग्री वापस बाजार में डालना  है जो  अंततः, वातावरण में आकर मिलता है.  - इस प्रकार विषाक्त उपयोग में कोई कमी नहीं आती. प्लास्टिक का जलाना जल में मिलाना जमीन में गाड़ना  इत्यादि से इससे छुटकारा नही पाया जा सकता. इससे यह और प्रदूशाक्कारी के रूप में सामने आता है.
दैनिक जीवन में प्लास्टिक का प्रयोग बिलकुल बंद करना होगा .इसके लिए सरकार और सबसे बड़ी बात जनता को सामने आना होगा अगर  सख्ती के साथ इस समस्या का समाधान करना होगा नहीं तो शायद मानवजाति  का अंत निकट होगा. 

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

माघ मेंले के जड़ श्रद्धालू तथा जड़ता को प्रोत्साहित करती सरकार

प्रयाग की रेती में हर साल माघ के महीने में देश विदेश से तथा कथित  श्रद्धालू अपने पाप धोने गंगा की गोद में आते है. सबके अपने अपने स्वार्थ है जिसके वशीभूत होकर वे गंगा में दुबकी लगा कर असीमित सुखों का जखीरा अपने नाम करने की उत्कट  लालसा रखते है. ये कैसी श्रद्धा है जो यह नहीं देखती कि जिस गंगा को हम माँ कहते है उसी को गन्दा करने पर तुले है. यह तो दोगलापन  हुआ. यह जड़ता का भी द्योतक है. मै गंगा के हालत का जायजा लेने कल ८ फ़रवरी को इलाहाबाद गया था

 आइये आपको भी वहा के हालात दिखाता चलू

यह वह पवित्र जल की दशा है जो लोगो को कभी मोक्ष प्रदान करने की हैसियत रखता था किन्तु आज स्वयं मुक्तिदाता की  बाट जोह रहा है.

ये गंगा का जलस्तर  है

गंगास्नान  को जाती पागल भीड़

ये अघोरी  जो गंगा में बहने वाले मुर्दों  पर नज़र रखे  था

मानव भविष्य  के सूचक  ये भिखारी

मेरे पीछे लगे कल्पवासियो के तम्बू

गंगा में सीधे गिरते नाले 

मानव  मल  का सीधा बहाव गंगा की ओर
सुधी पाठको क्या हम हाथ पर हाथ धरे ऐसे ही बैठे रहेगे आखिर कोई तो रास्ता होगा अपनी गंगा को बचाने का  संस्कृति को बचाने का अपनी माँ को बचाने का





















सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

गंगा की प्रमुख धाराओं की वर्तमान स्थिति

गंगा की प्रमुख धाराओं की वर्तमान स्थिति  अत्यंत दयनीय है.अब गंगा कचरे की संस्कृति का प्रतीक बन गयी है
नीचे गंगा से सम्बंधित तकरीबन सभी धाराओं का विवरण दिया गया है...



१ गणेश गंगा (पातालगंगा )---- सूखी
२ गरुड्गंगा        ------                सूखी
३ ऋषी गंगा      -----                  जलस्तर में तेजी से गिरावट
४ रूद्र गंगा        ------                 विलुप्त
५ धवल गंगा    ------                 जलस्तर में तेजी से गिरावट
६ विरही गंगा   ------                  जलस्तर में तेजी से गिरावट
७ खंडव गंगा      -----                 विलुप्त
८ आकाश गंगा  ------                जलस्तर में तेजी से गिरावट
९ नवग्राम गंगा  ------                विलुप्त
१० शीर्ष गंगा       -----                 विलुप्त
११ कोट गंगा        -----                विलुप्त
१२ गूलर गंगा       -----               जलस्तर में तेजी से गिरावट
१३ हेम गंगा         -----                सूखी
१४ हेमवती गंगा     ----               विलुप्त
१५  हनुमान गंगा   ----               जलस्तर में तेजी से गिरावट
१६ सिध्तारंग गंगा    ----             जलस्तर में तेजी से गिरावट
१७ शुद्ध्तारंगिनी  गंगा   ----        विलुप्त
१८ धेनु गंगा       -----                  विलुप्त
१९ सोम गंगा        -----                विलुप्त
२० अमृत गंगा      -----               जलस्तर में तेजी से गिरावट 
२१ कंचन गंगा      -----                वनस्पति के तीव्र दोहन से गादयुक्त हो गयी है
२२ लक्ष्मण गंगा      ------            जलस्तर में तेजी से गिरावट 
२३ दुग्ध गंगा      -----                  विलुप्त
२४ घृत गंगा   -----                     विलुप्त
२५ रामगंगा         -----               तेजी से सूख रही है
२६ केदार गंगा                            जलस्तर में तेजी से गिरावट      
गंगा के नाम पर अपनी दूकान चलाने वाले गंगा का सर्वनाश करके छोड़ेगे. इस देश में गंगा से कोई प्यार नही करता. नहीं तो ऐसी दुर्दशा पर क्रांति मच जानी चाहिए था.  वे जिन्हें तथाकथित नाज है  अपनी संस्कृति पर, संस्कृति की आत्मा गंगा की कोई खोज  खबर नहीं लेते क्योकि आत्मा नाम की वस्तु आउट आफ डेट   हो गयी है.          
Ref. The journal of Indian Thought  and Policy research, sep 2010.

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

बाघों के संरक्षण के लिए मातमपुरसी

पिछले 36 महीनो  में उत्तर प्रदेश के जिला खीरी एवं पीलीभीत के जंगलों से बाहर आये  बाघों के द्वारा खीरी, पीलीभीत, शाहजहांपुर, सीतापुर, बाराबंकी, लखनऊ, फैजाबाद में करीब दो दर्जन के लोग मारे जा  चुके हैं. इसे मानवता के लिए दुखद माना  जाना चाहिए. किन्तु उन बाघों के लिए क्या जिनका  शिकार  मनुष्य कर रहे हैं. बाघ जन्म से हिंस्रक और खूंखार तो होता है, लेकिन नरभक्षी  नहीं होता। बाघ को मानवजनित अथवा प्राकृतिक परिस्थितियां मानव पर हमला करने को विवश करती हैं
प्राकृतिक रूप से खूंखार होने  होने के बाद भी विशेषज्ञों की राय में बाघ किसी पर यूं ही आक्रमण नहीं करता
इसीलिये  वह  बस्ती  से दूर रहकर घने जंगलों में रहता है और तो और  दिन को छुप कर रहता है. । परिस्थियों से मजबूर  होने की वजह से तथा भूख से पीड़ित होने के कारण वह हमला करता है.  जिम कार्बेट का भी कहना था " बाघ बूढ़ा होकर लाचार हो गया हो, जख्मी होने से उसके दांत, पंजा, नाखून टूट गये हो या फिर प्राकृतिक या मानवजनित विषम परिस्थितियां उत्पन्न हो गई हों, तभी बाघ इंसानों पर हमला करता है।" उनका यह भी मानना था कि जन्म से खूंखार  होने के बावजूद  बाघ मानव पर एक अदृश्य डर के कारण हमला नहीं करता और यह भी कोई जरूरी नहीं है कि नरभक्षी बाघ के बच्चे भी नरभक्षी हो जायें
मेरा अपना विचार है बाघों को सुनियोजित तरीके से नरभक्षी बनाया जाता है फिर उनकी हत्या को वैध रूप प्रदान करने में आसानी हो जाती है. यह सब उस मानवता के नाम पर होता है जो चाँद कागज के टुकडो में बिकती है. बाघों का शिकार बढ़ती मांग का ही नतीजा है .  6 साल पहले बाघ की हड्डियां प्रति किलो 3,000 से 5,000 डॉलर हुआ करती थी। बाघ की हड्डियों का इस्तेमाल कामोत्तेजना बढ़ाने वाले उत्पाद, जोड़ों या हड्डियों की बीमारियों को दूर करने की दवाएं आदि बनाने में किया जाता है। वहीं बाघ के नाखून बुरी शक्तियों को दूर भगाने के लिए लोकप्रिय हैं। इनकी कीमत भी हड्डियों के बराबर ही है। तब से लेकर अब तक इनकी कीमतें 10 से 15 फीसदी बढ़ी हैं।
अरबो  रूपये खर्च होने के बाद  भी बाघों का संरक्षण   चुनौती बना हुआ है। कार्बेट टाइगर रिजर्व में वर्ष 2010 में 3 बाघों की मौत हुई। जबकि एक बाघ को आदमखोर घोषित कर मारने का अभियान चल रहा है।  2009 में इसी  रिजर्व में यह आंकड़ा 6 तक पहुंच गया था।  इसके अलावा वर्ष 2010 में कार्बेट टाइगर रिजर्व  ६ बाघों की प्राकृतिक कारणों की वजह से मारे जाने की बात बतायी गयी ( ढिकाला जोन में 5 जनवरी को आपसी लड़ाई व 11 जनवरी को प्राकृतिक कारण से नर बाघों मौत हुई। 2 जुलाई को कालागढ़ रेंज में पीठ में घाव होने से नर बाघ की मौत हो गई। रामनगर वन प्रभाग में एकमात्र बाघ की मौत 19 अगस्त को कालाढूंगी रेंज में नाले में बहकर होने से हुई। 14 मार्च को उत्तरी जसपुर रेंज में नर बाघ का शव मिला। वहीं 24 नवंबर को दक्षिणी जसपुर रेंज में बीमार हालत में मिले मादा बाघ ने पंतनगर में उपचार के दौरान दम तोड़ दिया।) यह मौतें बाघ संरक्षण के अभियान को तगड़ा झटका देने वाली रही। 
संरक्षण के नाम पर अघिक आर्थिक मदद स्वीकृत कराने के फेरे में विभाग बाघों की संख्या गलत बताता आ रहा है। इनके जानकार कम होने से वे सभी को गुमराह कर देते हैं।
ऐसे में बाघों के संरक्षण के लिए सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर चलाई जाने वाली परियोजनाए या गैर सरकारी संगठनो की मातमपुर्सी मज़ाक नहीं तो और क्या है.