बुधवार, 15 मई 2013

भूमंडलीकरण, वैश्वीकरण, उदारीकरण बनाम सांस्क़ृतिक संघर्ष

 
वैश्वीकरण शब्द को विश्व की संस्कृतियो अर्थव्यवस्थाओं तथा राज व्यवस्थाओं का एक दूसरे के ऊपर पड़ने वाले प्रभावों जिसमें सात्मीकरण एवं अलगाव दोनों सम्मिलित हैं, के क्रम में समझा जा सकता है।

      वैश्वीकरण के सुविधानुसार कई पर्याय बना दिये गये हैं, जिसमें भूमण्डलीकरण और उदारीकरण प्रमुख हैं। प्रसिद्ध दार्शनिक ज्या बोद्रिला वैश्वीकरण और भूमण्डलीकरण में अन्तर करते हुए कहते हैं कि ‘‘वैश्वीकरण का सम्बन्ध मानवाधिकार स्वतंत्रता, संस्कृति और लोकतंत्र से है। वहीं भूमण्डलीकरण प्रौद्योगिकी, बाजार, पर्यटन और सूचना से ताल्लुक रखता है।’’ उदारीकरण का तात्पर्य प्रमुखतः अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से है, जिसमें सीमा-शुल्क में भारी कटौती की जाती है ताकि विदेशी सामान सस्ते दरों पर देश में बिक सके।

             राज्य मौलिक अधिकारों के माध्यम से नागरिक अधिकारों की रक्षा की गारण्टी देता है, अनुच्छेद-21 में प्रदत्त जीवन सुरक्षा का अधिकार आपातकाल के दौरान भी नहीं हटाया जा सकता। एक विश्व अर्थव्यवस्था की दिशा में कार्यरत वैश्वीकरण की प्रक्रिया बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के माध्यम से राज्य को कमजोर करती है। ये कम्पनियाँ अपने मुनाफे के लिए एक तरफ राज्य की जैव विविधता एवं पर्यावरण का शोषण करती हैं, दूसरी ओर कमजोर मानवाधिकार कानूनों के कारण स्थानीय व्यक्तियों की स्वतंत्रताओं का हनन करती हैं। वस्तुतः विश्व वित्त बाजार राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के नियंत्रण से काफी हद तक बाहर है। इससे राज्य, समुदाय एवं व्यक्ति की शक्तियों एवं स्वतंत्रताओं का क्षरण हुआ है। राज्य एकपक्षीय बनता जा रहा है, वह बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हितों का प्रतिनिधित्व तो कर रहा है किन्तु नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने एवं उनके हितों के प्रतिनिधित्व में असफल हो रहाहै।
 
ठीक यही स्थिति सांस्क़ृतिक तथ्यो से जुडी है संस्कृति सापेक्ष होती है अर्थात् दूसरी संस्कृति की तुलना में किसी और संस्कृति को अच्छा और बुरा नहीं कहा जा सकता है। किन्तु वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें वृहद परम्परायें, लघु परम्पराओं को दबाने का काम करती है। मीडिया एवं उपनिवेशवादी ताकतों के सहारे स्थानीय संस्कृतियों को उपेक्षणीय बना दिया जाता है, जैसे भारत में अभिजात्यवर्ग या उच्चमध्यमवर्गीय घरों में लोकगीतों का गाया जाना या अन्य सांस्कृतिक तथ्यों को लेकर किया जाने वाला उपेक्षणीय व्यवहार सांस्कृतिक असामन्जस्य क्षेत्रीय संघर्ष को जन्म देता है।
 
 

मंगलवार, 14 मई 2013

नशे के कारोबार मे राज्य की भूमिका

ड्रग्स का उपयोग लगभग उतना ही पुराना है जितनी पुरानी मानव सभ्यता। लेकिन अधिक नशे की लत और खतरनाक सिंथेटिक दवाएं पश्चिमी देशों के द्वारा शुरू किए गए थे, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका के आधुनिक युग के दौरान। ड्रग्स दो प्रकार होते हैं साफ्ट और हार्ड,  साफ्ट  ड्रग्स कम नशे की लत और कम हानिकारक है।  हार्ड ड्रग की कठोरता से नशे की तीव्र लत पड जाती  है जो व्यक्ति और समाज के  लिए बहुत अधिक खतरनाक है। साफ्ट ड्रग्स को विभिन्न संस्कृतियों में लोग एक लंबे समय के बाद से इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन तथ्य  यह है कि विभिन्न आधुनिक हार्ड ड्रग्स का आविष्कार द्वितीय विश्व युद्ध और शीत युद्ध के युग के दौरान राज्य एजेंसियों की मदद से किया गया। हार्ड ड्रग का सबसे अधिक लोकप्रिय रूप एल.एस.डी. (lysergic Acid diethylamide)  है जिसकी खोज औद्योगिक रसायनज्ञ अल्बर्ट हॉफमैन ने की थी। एलएसडी का प्रयोग  प्रतिद्वंद्वी देशों के एजेंटों से  महत्वपूर्ण जानकारी को  प्राप्त करने  के लिये शीत युद्ध के दौरान अमेरिकी एजेंसियों द्वारा इस्तेमाल किया गया था। इस उद्देश्य के लिए सीआईए द्वारा कई प्रयोग और  शोध किए गए, सीआईए के निर्देश पर  तीस से अधिक विश्वविद्यालयों और संस्थानों में एक 'व्यापक प्रयोग परीक्षण' कार्यक्रम  शुरु हुआ. इस प्रयोग के दौरान जाने कितने परीक्षण गुप्त रूप से अविकसित देशो और अज्ञात नागरिको पर किये गये. इस प्रक्रिया मे इसी परियोजना से जुडे डा. ओल्सन की मृत्यु भी हुयी. सीआईए कार्यक्रम मुख्यतः MKULTRA के नाम से जाना जाता है,  यह 1950 में शुरू हुआ.
1960 में हिप्पी आंदोलन का पश्चिमी संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ा, संगीत, कला और युवा अमेरिकियों के हजारों युवा सैन फ्रांसिस्को में इकट्ठा हुये।  हालांकि आंदोलन सैन फ्रांसिस्को में केन्द्रित था, पर प्रभाव दुनिया भर मे पड रहा था. ये हिप्पी आधुनिकता की वर्जनाओ को तोड कर 'फ्रेमलेस जीवन' को अपनाने का प्रयास कर रहे थे, जो राज्य को मंजूर नही था. फलस्वरूप एल एस डी  दवाओं का उपयोग कर के पूरी की पूरी युवा खेप को नशेडी बना देने का संस्थागत प्रयास किया गया।
राज्य नशे का कारोबार बखूबी करता है. प्रथम दृष्टया लगता है कि राज्य एक आदर्शात्मक संस्था है, पर इसे नियंत्रित करने वाले ही इसके चरित्र का निर्माण करते है. इस समय अमेरिका नशे का सबसे बडा कारोबारी है.  अमेरिका सहित तमाम राज्यों दवाओं के  नशे के मुद्दे पर दोहरे मानदंड निम्नलिखित हैं। चाहे इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार न करे किंतु सरकार की छिपी नीतिया इसका घोर समर्थन करती है। अमेरिकी और पाकिस्तान समेत अरब देशो की खुफिया एजेंसियों अपने ‘मुखौटे अभियान’ चलाने के लिए बहुत ज्यादा पूंजी की आवश्यकता होती है। उनको अपने स्थानीय एजेंटोंको  पैसे और हथियार के लिए नशा कारोबर एक सस्ता विकल्प लगता है. ऐसी परिस्थितियों जब राज्य खुद ड्रग्स के धन्धे को प्रमोट करता हो तो भविष्य क्या होगा अनुमान लगाना मुश्किल है कमोबेश आतंकवाद भी एलएसडी ही जैसा है जिसे राज्य ने ही प्रमोट किया हुआ है. यह समस्या एक ही तरीके से कम हो सकती है और वह तरीका उच्च स्तर की अंतरराष्ट्रीय समझ और विभिन्न राज्यों के बीच आम सहमति के माध्यम से ही संभव हो सकता है.
 
 

बुधवार, 8 मई 2013

गंगा प्रदूषण से सम्बन्धित आंकडे और धाराओ की वर्तमान स्थिति

 
गंगा प्रदूषण से सम्बन्धित आंकडे निम्नलिखित है.

१.गंगा में गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक प्रतिदिन १४४.२ मिलियन क्यूबिक मलजल प्रवाहित किया जाता है.
२. गंगा में लगभग ३८४० नाले गिरते है.
३.गंगा तट पर स्थापित औद्योगिक इकाईया प्रतिदिन ४३० मिलियन लीटर जहरीले अपशिष्ट का उत्सर्जन करती है जो सीधे गंगा में बहा दिया जाता है.
४. लगभग १७२.५ हजार टन कीटनाशक रसायन और खाद हर वर्ष गंगा में पहुचता है.
५.वर्तमान समय में गंगा में डालफिन लुप्तप्राय है. उत्तर प्रदेश में मात्र १०० बची है.
६.गंगा किनारे ३ किलोमीटर के दायरे में धोबीघाट पाए जाते है जो ४० से ६० प्रतिशत फास्फोरस डिटर्जेंट के माध्यम से पहुचा रहे है.
७. गंगा बेसिन में केवल १४.३ परसेंट वन शेष रह गए है.
इन सबकी वजह से गंगा की प्रमुख धाराओं की वर्तमान स्थिति अत्यंत दयनीय हो गयी है.अब गंगा कचरे की संस्कृति का प्रतीक बन गयी है
नीचे गंगा से सम्बंधित तकरीबन सभी धाराओं का विवरण दिया गया है...
१ गणेश गंगा (पातालगंगा )---- सूखी
२ गरुड्गंगा ------ सूखी
३ ऋषी गंगा ----- जलस्तर में तेजी से गिरावट
४ रूद्र गंगा ------ विलुप्त
५ धवल गंगा ------ जलस्तर में तेजी से गिरावट
६ विरही गंगा ------ जलस्तर में तेजी से गिरावट
७ खंडव गंगा ----- विलुप्त
८ आकाश गंगा ------ जलस्तर में तेजी से गिरावट
९ नवग्राम गंगा ------ विलुप्त
१० शीर्ष गंगा ----- विलुप्त
११ कोट गंगा ----- विलुप्त
१२ गूलर गंगा ----- जलस्तर में तेजी से गिरावट
१३ हेम गंगा ----- सूखी
१४ हेमवती गंगा ---- विलुप्त
१५ हनुमान गंगा ---- जलस्तर में तेजी से गिरावट
१६ सिध्तारंग गंगा ---- जलस्तर में तेजी से गिरावट
१७ शुद्ध्तारंगिनी गंगा ---- विलुप्त
१८ धेनु गंगा ----- विलुप्त
१९ सोम गंगा ----- विलुप्त
२० अमृत गंगा ----- जलस्तर में तेजी से गिरावट
२१ कंचन गंगा ----- वनस्पति के तीव्र दोहन से गादयुक्त हो गयी है
२२ लक्ष्मण गंगा ------ जलस्तर में तेजी से गिरावट
२३ दुग्ध गंगा ----- विलुप्त
२४ घृत गंगा ----- विलुप्त
२५ रामगंगा ----- तेजी से सूख रही है
२६ केदार गंगा जलस्तर में तेजी से गिरावट               
गंगा के नाम पर अपनी दूकान चलाने वाले गंगा का सर्वनाश करके छोड़ेगे. इस देश में गंगा से कोई प्यार नही करता. नहीं तो ऐसी दुर्दशा पर क्रांति मच जानी चाहिए था. वे जिन्हें तथाकथित नाज है अपनी संस्कृति पर, संस्कृति की आत्मा गंगा की कोई खोज खबर नहीं लेते क्योकि आत्मा नाम की वस्तु आउट आफ डेट हो गयी है.
 

विषमुक्त और शून्य लागत की खेती: 'सैम्पल एक्सपेरीमेंट'

आईआई.टी. मे हुयी मानव मूल्य कार्यशाला के दौरान मै गोपाल उपाध्याय के सम्पर्क मे आया. उन्होने सुभाष पालेकर जी का जिक्र करते हुये मुझे फर्रुखाबाद आने का निमंत्रण दिया. यहा मुझे बाग़डिया जी के द्वारा पालेकर जी के कार्यो की जानकारी मिल चुकी थी. मै बागडिया जी और संतोष भदौरिया के  के संस्थान मे जाकर विषमुक्त खेती का अवलोकन कर चुका था. इन सब से एबात मेरे मन मे पुख्ता तौर पर बैठती जा रही थी कि जो 'हरित क्रांति विकास' का माडल किसानो के लिये प्रचारित किया जा रहा है वह धरती के शोषण पर आधारित है, और आज नही तो कल इसका भयंकर परिणाम भुगतना पडेगा. जैसा कि पंजाब मे अब दिखायी देने लगा है. मैने अपने बडे भईया राजकुमार जी को कानपुर बुलाकर इस विषय पर मंत्रणा की और उन्हे इसके लिये तैयार किया. भाई गोपाल और सुभाष पालेकर का  मार्गदर्शन मिला और हम लोगो ने अपने खेत मे एक 'सैम्पल एक्सपेरीमेंट' किया. 
विषमुक्त खेती मे रासायनिक खाद, कीटनाशक, गोबर का कम्पोस्ट, संकर बीज या हाईब्रीड किस्मो का प्रयोग बिलकुल नही किया जाता. बल्कि गोमूत्र के फर्मेंटेशन के द्वारा एक घोल तैयार किया जाता है जिसके छिडकाव से प्राकृतिक रूप से धरती मे जीवाणु सक्रिय हो जाते है और फसलो के लिये लाभदायक होते है. इसमे पानी का भी इस्तेमाल कम होता है. इस प्रकिया का एक स्लोगन है 'एक गाय देशी दस एकड खेती'.गाय का देशी होना महत्वपूर्ण है. लोग जर्सी को गाय की प्रजाति कहते है पर मेरे हिसाब से यह सुअर प्रजाति है इसे गाय मानना ठीक वैसे है जैसे नीलगाय को गाय मानना. इस खेती से हम पुन: गाय और धरती से अपने सम्बन्ध ठीक कर पायेंगे और इन के आशीर्वाद से  पुन:  हर घर मे दूध घी और अन्नपूर्णा का वास हो सकेगा.
         एक साथ आठ फसले जिसमे सूरजमुखी, मूंग, गन्ना, कद्दू, भिंडी,टमाटर और प्याज और ककडी है,ली जा रही है.
                                                       मूंग
                                                           सूरजमुखी
                                                       विषमुक्त प्याज दिखाते मेरे बडे भाई
                                                 ये बिना रासायनिक खाद के उत्पादित मक्का है
                                                               भिंडी
                                                             कद्दू

                             प्रयोग की सफलता के बाद की मुसकराहट के साथ मै.