ड्रग्स का उपयोग लगभग उतना ही पुराना है जितनी पुरानी मानव
सभ्यता। लेकिन अधिक नशे की लत और खतरनाक सिंथेटिक दवाएं पश्चिमी देशों के द्वारा शुरू
किए गए थे, विशेष रूप से
संयुक्त राज्य अमेरिका के आधुनिक युग के दौरान। ड्रग्स दो प्रकार होते हैं साफ्ट और हार्ड, साफ्ट ड्रग्स
कम नशे की लत और कम हानिकारक है। हार्ड
ड्रग की कठोरता से नशे की तीव्र लत पड जाती है जो व्यक्ति और समाज के लिए बहुत अधिक खतरनाक
है। साफ्ट ड्रग्स को विभिन्न संस्कृतियों में लोग एक लंबे समय के बाद से इस्तेमाल कर रहे
हैं, लेकिन तथ्य यह है कि
विभिन्न आधुनिक हार्ड ड्रग्स का आविष्कार द्वितीय विश्व युद्ध और शीत युद्ध के युग
के दौरान राज्य एजेंसियों की मदद से किया गया। हार्ड ड्रग का सबसे अधिक
लोकप्रिय रूप एल.एस.डी. (lysergic Acid diethylamide) है जिसकी खोज औद्योगिक रसायनज्ञ अल्बर्ट हॉफमैन ने की थी। एलएसडी का
प्रयोग प्रतिद्वंद्वी देशों के एजेंटों से
महत्वपूर्ण जानकारी को प्राप्त करने
के लिये शीत युद्ध के दौरान अमेरिकी एजेंसियों द्वारा इस्तेमाल किया गया
था। इस उद्देश्य के लिए सीआईए द्वारा कई प्रयोग और शोध किए गए, सीआईए के निर्देश पर तीस से अधिक विश्वविद्यालयों और संस्थानों में
एक 'व्यापक प्रयोग परीक्षण'
कार्यक्रम शुरु हुआ. इस प्रयोग के दौरान जाने कितने
परीक्षण गुप्त रूप से अविकसित देशो और अज्ञात नागरिको पर किये गये. इस प्रक्रिया
मे इसी परियोजना से जुडे डा. ओल्सन की मृत्यु भी हुयी. सीआईए कार्यक्रम मुख्यतः MKULTRA के नाम से जाना जाता है, यह 1950 में शुरू हुआ.
1960 में हिप्पी आंदोलन का पश्चिमी संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ा, संगीत, कला और युवा अमेरिकियों के हजारों युवा सैन फ्रांसिस्को में इकट्ठा
हुये। हालांकि आंदोलन सैन फ्रांसिस्को में
केन्द्रित था, पर प्रभाव दुनिया भर मे पड रहा था. ये हिप्पी आधुनिकता की वर्जनाओ को तोड कर
'फ्रेमलेस जीवन' को अपनाने का प्रयास कर रहे थे, जो राज्य को मंजूर नही था. फलस्वरूप
एल एस डी दवाओं का उपयोग कर के पूरी की
पूरी युवा खेप को नशेडी बना देने का संस्थागत प्रयास किया गया।
राज्य नशे का कारोबार
बखूबी करता है. प्रथम दृष्टया लगता है कि राज्य एक आदर्शात्मक संस्था है, पर इसे
नियंत्रित करने वाले ही इसके चरित्र का निर्माण करते है. इस समय अमेरिका नशे का
सबसे बडा कारोबारी है. अमेरिका सहित
तमाम राज्यों दवाओं के नशे के मुद्दे पर
दोहरे मानदंड निम्नलिखित हैं। चाहे इसे सार्वजनिक
रूप से स्वीकार न करे किंतु सरकार की छिपी नीतिया इसका घोर समर्थन करती है। अमेरिकी
और पाकिस्तान समेत अरब देशो की खुफिया एजेंसियों अपने ‘मुखौटे अभियान’ चलाने के
लिए बहुत ज्यादा पूंजी की आवश्यकता होती है। उनको अपने स्थानीय एजेंटोंको पैसे और हथियार के लिए नशा कारोबर एक सस्ता
विकल्प लगता है. ऐसी परिस्थितियों जब राज्य खुद ड्रग्स के धन्धे को प्रमोट करता हो
तो भविष्य क्या होगा अनुमान लगाना मुश्किल है कमोबेश आतंकवाद भी एलएसडी ही जैसा है जिसे राज्य ने ही प्रमोट किया हुआ है. यह समस्या एक ही तरीके से कम हो सकती
है और वह तरीका उच्च स्तर की अंतरराष्ट्रीय समझ और विभिन्न राज्यों के बीच आम
सहमति के माध्यम से ही संभव हो सकता है.
उच्च स्तरीय समझ और विभिन्न राज्यो के बीच यदि सह्मति सम्भव हो पाती तो देश मे नशे का कारोबार बहुत पह्ले ही रुक गया होता, इसिलिये यदि नशे का इस्तेमाल बंद तो नशे की वस्तुओ का निर्माण बंद, क्युंकि ये तो सर्वविदित है कि आवश्यक्ता ही आविश्कार की जननी है.
जवाब देंहटाएंसच बात है, बिना सहमति के कहाँ फूलता है यह।
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