देश में बीते नौ महीनों में कम से
कम 69 बाघों की मौत हुई है। इनमें से अधिकांश बाघों की मौत दुर्घटना या फिर
शिकारियों के कारण हुई है। यह जानकारी राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण
(एनटीसीए) ने शुक्रवार को दी।यह सूचना IBN7 से प्राप्त हुयी है।
एनटीसीए
के सहायक महानिरीक्षक राजीव शर्मा ने बताया कि देश के 41 बाघ अभयारण्यों
में जनवरी से सितम्बर के बीच 69 बाघों की मौत हुई है। इनमें से 41 की मौत
शिकार या फिर किसी दुर्घटना के कारण हुई है, जबकि 28 की प्राकृतिक मौत हुई
है।
उत्तराखण्ड, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में मृत्यु दर ऊंची है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार देश में केवल 1,706 बाघ बचे हैं।
जैसा कि पहले भी मै कह चुका हू बाघों को सुनियोजित तरीके से नरभक्षी बनाया जाता है फिर
उनकी हत्या को वैध रूप प्रदान करने में आसानी हो जाती है. यह सब उस मानवता के नाम पर होता है जो चाँद कागज के टुकडो में बिकती है. बाघों का शिकार बढ़ती
मांग का ही नतीजा है . 6 साल पहले बाघ की हड्डियां प्रति किलो 3,000 से
5,000 डॉलर हुआ करती थी। बाघ की हड्डियों का इस्तेमाल कामोत्तेजना बढ़ाने
वाले उत्पाद, जोड़ों या हड्डियों की बीमारियों को दूर करने की दवाएं आदि
बनाने में किया जाता है। वहीं बाघ के नाखून बुरी शक्तियों को दूर भगाने के
लिए लोकप्रिय हैं। इनकी कीमत भी हड्डियों के बराबर ही है। तब से लेकर अब तक
इनकी कीमतें 10 से 15 फीसदी बढ़ी हैं।
अरबो रूपये खर्च होने के बाद भी बाघों का संरक्षण चुनौती बना हुआ है।
वाणी प्राणियों का संरक्षण बहुत ज़रूरी है ॥!!
जवाब देंहटाएंएक जागरूकता देता सार्थक आलेख ...!!
चुनौती है, बड़ी चुनौती..
जवाब देंहटाएंसरकारी आंकडें दिया है आपने हो सकता है सच्चाई कुछ और हो| ये तो भारत सरकार की परम्परा है कि पैसे जहाँ खर्च होने के लिए जाते हैं वहाँ खर्च कहाँ होते हैं.....
जवाब देंहटाएंसच में स्तिथि विचारणीय है.............
वाकई... बहुत सारी कोशिशों और कड़ी मेहनत की आवश्यकता है...
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