दर्शन और व्यवहार का दोगलापन ही वह सहज चीज़ है जो इस जमाने को हर गुजरे जमाने से अलग करता है. हो सकता है किसी जमाने में आदमी ज्यादा बर्बर हिंसक या आक्रामक रहा हो लेकिन यह तय है की उस पशुत्व में भी कम से कम धोखाधड़ी न थी. हो सकता है की चंगेज़ो या नादिरशाहो ने नरमुंडो के ढेर लगाए हो पर यह तय है उन्होंने मानवतावाद सह अस्तित्व प्रजातंत्र या समाजवाद के नारे नहीं ही लगाए थे. साम्प्रदायिकता प्रबल रही होगी लेकिन निश्चित ही धर्मनिरपेक्षता की ओट में नहीं रही होगी. गौर से देखा जाय कि बीसवी शताब्दी और खासकर द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की दुनिया छद्मवाद की दुनिया है. मानवता और प्रजातंत्र का रक्षक बेहिचक परमाणु बम का प्रयोग करता है जनसमर्थन से क्रान्तिया करने वाले जनसंहार में तिल भर संकोच नहीं कर रहे है. प्रजातान्त्रिक व्यवस्थाये नंगी ताकत के सहारे चल रही हैं. धर्मध्वजा लहराते हुए विजय अभियान पर निकले गिरोह अपने वास्तविक उद्देश्यों में धर्मनिरपेक्ष नहीं तो गैर धार्मिक तो है ही और उनसे कही कमतर नहीं वो धर्मनिरपेक्ष जो बिना साम्प्रदायिक टुकडो में बांटे सच्चाई को देख ही नहीं सकते. पर्यावरण को नष्ट करने वाली नयी से नयी तकनीक का प्रयोग करने वाले ही यह हैसियत रखते है वो पर्यावरण संरक्षण के लिए बड़े से बड़ा एन.जी.ओ. चलाये.
सो भैया राज तो है दोगलो का हर ढोल में बहुत बड़ा पोल, घुस सको तो घुस जाओ और न घुस पाए तो ढोल की तरह पिटते रहिहे . दोनों ही सूरत में कल्याण नहीं है.
वर्तमान समय में आवश्यकता है सहज ढंग से चलने वाली व्यवस्था का जिसमे शिखंडी तत्व की मौजूदगी न हो.
बोल्यो...
गान्ही महाराज की जय
भ्रष्टाचारियों की हो क्षय
दरअसल यह सवाल भी उठता है लोकतान्त्रिक व्यवस्था का विकल्प क्या होगा? वर्तमान परिस्थितियों पर नजर डाले तो यह बात सामने आती है कि लोकतंत्र भ्रष्टतंत्र में तब्दील हो चुका है| इस भ्रष्टतंत्र से मुक्ति की लड़ाई ज़रुरी है| अच्छा आलेख| धन्यवाद
जवाब देंहटाएंgood one effort........for our nature prelostic.
जवाब देंहटाएंव्यवस्था का विकल्प या व्यवस्था में विकल्प।
जवाब देंहटाएंअच्छा लेख
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग , व्यवस्था का कोढ़ बज बजा रहा है . ढोल के पोल तो खुले है लेकिन उम्मीद है लोगों का चैन की बांसुरी बजाना जल्दी ही बंद होगा .
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लेख
जवाब देंहटाएंबहुत ही जोरदार लेख भेड की खाल मे छिपे भेडियों के विषय में। आज बहुत बडी जरूरत है इन्हे बेनकाब करने की।
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