सभ्य समाज में इसे नक्सली समस्या कहा जाता है
"दुनिया ने मुझे बाँट लिया हज्बे जरूरत
खुद अपनी जरूरत के लिए भी न बचा मै"एक आम आदिवासी पीड़ा को उनके शब्दों में महसूस कीजिये.
"उन्होंने मुझसे अनगिनत वादे किये,
इतने कि मुझे सब याद नही है लेकिन पूरा सिर्फ एक वादा किया .
उन्होंने मुझसे कहा था कि मेरी जमीन ले लेगे
और उन्होंने ले ली."
मेरी हरी भरी पहाड़िया कहा गयी?
मेरे बचपन में चरागाहे इतनी इतनी हरी भरी थी
कि मेरे मवेशी व जानवर यहाँ साल भर चरते थे
आज नज़र उठा कर देखता हूँ तो
केवल भूरी भूरी चट्टानें ही नज़र आती है.
मै क्या करू?
उपभोगवाद ने भस्मासुरी परिणाम दिखाने शुरू कर दिए है ये नक्सल समस्या उसी शोषण का परिणाम है जो अब अपने प्रचंड रूप से देश और सरकार को आतंकित किये हुए है. सलवा जुडूम का गठन कोढ़ में खाज पैदा करने वाला कदम था. इस देश में सामाजिक नीतियों का निर्माण पूजीपति करते है जो हर चीज़ में लाभ हानि का गुणा भाग करके किसी भी योजना को मूर्त रूप देते है. बात महज सामजिक नीतियों की ही नही शैक्षिक नीति हो या सांस्कृतिक सब में ये लिप्त है. किसी सांस्कृतिक नीति निर्माण में कोई मानवशास्त्री या समाजशास्त्री के शामिल होने की संभावना नगण्य रहती है और अगर रहती भी है तो केवल हाथी के दांत सरीखी. अब भी समय है अगर चेता न गया तो सम्पूर्ण देश के कुरुक्षेत्र बनने में समय नही लगेगा.
bilkul sahi kaha aapne kuch vyavharik kadam uthana padega in samasyaon si nipatne ke liye
जवाब देंहटाएंaaj jinko ham samasyaa ke roop mai dekh rahe hai , kaash k hum unki samasyaayen sunte , kam karne ki kosis karte , to shayad jo samasyaayen n logo ne khadi k hi , wo kud -b-kud khatm ho jati
जवाब देंहटाएंइस शोषण का अंत नही तब तक जब तक पूंजी की हवस है
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